कॉसमॉस मॉल के फेयरफील्ड मैरियट में कार्यशाला आयोजित

शि.वा.आगरा। हॉर्टिकल्चर क्लब के तत्वाधान में लोगों में मिलेट के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु  कॉसमॉस मॉल के फेयरफील्ड मैरियट में एक आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एमसी गुप्ता व बतौर विशिष्ट अतिथि मीतू सिंह एवं डॉ. सुशील गुप्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपिका गुप्ता, डॉ. रंजना बंसल एवं डॉ. सुशील गुप्ता ने कियाl क्लब की अध्यक्ष लवली कथूरिया ने मुख्य वक्ता सुमिता गुप्ता व मीनाक्षी किशोर से मिलेट के विषय में कुछ प्रश्न पूछे, जिनके उन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से उत्तर दिए।

सुमिता गुप्ता ने बताया कि मिलेट मोटा व छोटे दाने वाला अनाज है। सभी अनाज 'पोएसी' नामक घास परिवार का हिस्सा हैं। इन घासों के बीजों को अनाज कहा जाता है और सबसे अधिक खेती किए जाने वाले अनाज चावल, गेहूँ, जई, मक्का और जौ हैं। उन्होंने बताया कि मिलेट भी अनाज है, लेकिन आजकल इसकी खेती आमतौर पर नहीं की जाती है। उन्होंने बताया कि मिलेट गेहूँ और चावल जैसे सामान्य अनाजों के लिए अत्यधिक पौष्टिक, कम कार्ब वाला विकल्प है और उन लोगों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प है, जो अपने समग्र स्वास्थ्य और वजन घटाने के लक्ष्यों में सुधार करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि मिलेट कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से प्रत्येक के पोषण संबंधी लाभों का अपना अनूठा सैट होता है। मिलेट सदियों से उगाया जाता रहा है। उन्होंने बताया कि कुछ मोटे अनाजों का इतिहास 5000 वर्ष से भी अधिक पुराना है और इनका उल्लेख कुछ वेदों में भी किया गया है। उन्होंने बताया कि लगभग 50 वर्ष पहले तक भारतीय परंपरागत रूप से केवल बाजरा का ही उपयोग करते थे। उन्होंने बताया कि यदि आप परंपराओं का पता लगाएंँ, तो कुट्टू का आटा, समा के चावल जैसे अनाज को उपवास के दौरान खाने की सलाह दी गई थी। उन्होंने बताया कि गेहूंँ और चावल का उत्पादन बढ़ने से मिलेट उत्पादन में गिरावट आई है।
उन्होंने बताया कि दुनिया भर में पोषण विशेषज्ञों द्वारा मिलेट की सिफारिश क्यों की जा रही है? क्या यह सच है कि यह मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, हृदय रोग, ऑटोइम्यून बीमारी और यहांँ तक कि वजन घटाने में भी मदद कर सकता है? उन्होंने बताया कि मिलेट पोषण का पावरहाउस है। गेहूंँ और चावल के विपरीत, यह आम तौर पर पूरे रूप में खाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उनमें अधिक फाइबर, विटामिन बी, खनिज और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स है। मिलेट ग्लूटेन-मुक्त होता है और कुल मिलाकर पचाने में आसान होता है। यह आपको लंबे समय तक तृप्त रखता है। उन्होंने बताया कि मिलेट कार्बोहाइड्रेट से भरपूर और आहार फाइबर का अच्छा स्रोत है। उन्होंने बताया कि फिंगर बाजरा और रागी आयरन और कैल्शियम जैसे खनिजों से भरपूर है और मधुमेह वाले लोगों के लिए फायदेमंद पाया गया है। उन्होंने बताया कि ज्वार में प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होते हैं और यह गेहूँ का ग्लूटेन-मुक्त विकल्प है। उन्होंने बताया कि फॉक्सटेल बाजरा कम कार्ब आहार का पालन करने वालों के लिए एक बढ़िया विकल्प है, क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है।
उन्होंने बताया कि छोटे दाने वाले अनाज जैसे बार्नयार्ड, फॉक्सटेल, लिटिल, कोदो और पोरसो को सकारात्मक मिलेट के रूप में शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि ऐसा उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने और अपनाने में वृद्धि के लिए किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हालाँकि सभी अनाज अच्छे हैं और उनकी पोषण संबंधी विशेषताएंँ अलग-अलग हैं। उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रकार के अनाज लेना सबसे अच्छा है, न कि केवल 'सकारात्मक मिलेट'।
उन्होंने बताया कि मिलेट छोटे बीज वाली घास है, जो शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है। ये कठोर पौधे हैं और कम या बिना पानी और शुष्क परिस्थितियों को सहन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन्हें उगाने के लिए उर्वरकों की भी आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने बताया कि भारत भर में किसान छोटी-छोटी जगहों पर इन्हें उगाते हैं। उन्होंने बताया कि अलग-अलग कृषि क्षेत्रों में अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं। उन्होंने बताया कि बाजरा राजस्थान और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। रागी गुजरात, भारत के दक्षिण और यहांँ तक कि उत्तराखंड में भी उगाया जाता है। ज्वार (ज्वार) पूरे भारत में उगाया जाता है। उन्होंने बताया कि छोटे बाजरा जैसे कोदो, फॉक्सटेल बाजरा, छोटा बाजरा आदि ज्यादातर कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में उगाए जाते हैं।
उन्होंने बताया कि मिलेट का उपयोग करना कठिन है। इन्हें खाने में आसान और सुपाच्य बनाने के लिए बहुत अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि टैनिन के प्रभाव को कम करने और खाने में आसान बनाने के लिए इन्हें भिगोने, सुखाने, पीसने और बदलने की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि आज के परिवारों को यह प्रक्रिया बोझिल लगती है और इससे निपटना कठिन लगता है। उन्होंने बताया कि गेहूंँ और चावल का उपयोग करना बहुत आसान है और वे स्वादिष्ट भी हैं। इसके अलावा गेहूंँ और चावल को अत्यधिक संसाधित किया जाता है और फाइबर हटा दिया जाता है, जिससे वे मोटे अनाज की तुलना में अधिक स्वादिष्ट बन जाते हैं, इसलिए भारतीय उपभोक्ता इनकी तुलना में गेहूंँ और चावल को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने बताया कि आप आटे में मिलेट मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि आप 20% मोटे या छोटे अनाज से 80% गेहूंँ तक शुरू कर सकते हैं और धीरे-धीरे पूरी रोटी तक बढ़ा सकते हैं।
कार्यक्रम में मानवीर सिंह, डेज़ी गुजराल, डॉ. मुकुल पांड्या, रेनू भगत, रितु बजाज व डॉली मदान की उपस्थिति सराहनीय थी। कार्यक्रम के अंत में निक्की चोपड़ा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।
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