स्वर्ण कलश

डॉ. अ कीर्तिवर्ध, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

नहीं चढ़ाओ स्वर्ण कलश मन्दिर के ऊपर,
नहीं बनाओ रजत प्रतिमा अब वेदी पर।
हर मन्दिर और शिवालय, शिक्षालय हों,
बच्चा बच्चा वीर शिवा, हो तैयार वहां पर।
भारत की सीमा रक्षा में, जो सक्षम हो,
यवन काल बनने को आतुर, सक्षम हो।
लक्ष्मी सा शौर्य, शिराओं में जिसकी दौड़े,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने में, सक्षम हो।
शस्त्र शास्त्र का भी वह विद्वान बने,
वाणी से सक्षम, गीता और पुराण बने।
धर्म कर्म मानवता संस्कारों का पोषक,
धर्म की रक्षा, राम कृष्ण हनुमान बने।
देश धर्म, मानवता का दुश्मन कोई भी हो,
हिन्दू मुस्लिम या नेता, गद्दार कोई भी हो।
मातृभूमि के आंचल पर जो नजर गड़ाए,
मौत की नींद सुला दे, मक्कार कोई भी हो।
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश।

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