मेडिकल की डिग्री में 12 हजार करोड़ का कारोबार (शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र के वर्ष 12, अंक संख्या-28, 7 फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख का पुनः प्रकाशन)


शि.वा.ब्यूरो, नई दिल्ली। देश के किसी भी आईआईटी और एम्स में कंफर्म ऐडमिशन वाला विज्ञापन नहीं निकलता है, मगर मीडिया में एमबीबीएस सीट के विज्ञापनों की भरमार रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि ऐडमिशन मेरिट के आधार पर होता है, तो कोई डायरेक्ट ऐडमिशन का वादा कैसे कर सकता है। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित खबर में दावा किया गया है कि ऐसा प्राइवेट काॅलेजों की मेडिकल सीटों के ब्लैक मार्केट के चलते होता है। काॅलेज मैनेजमेंट और एजेंट मिलकर प्राइवेट कालेजों में 30 हजार से ज्यादा एमबीबीएस और करीब 9,600 पीजी की सीटें बेचते हैं। इन सीटों में हर साल करीब 12 हजार करोड़ रुपए की ब्लैक मनी का खेल होता है। भारत में 422 मेडिकल कालेज में आधे से अधिक यानी करीब 224 प्राइवेट हैं। इनमें एमबीबीएस की 53 फीसद सीटें रहती हैं। इसमें से कई कालेजों में काफी कम सुविधाएं हैं। इसके बावजूद भी डाॅक्टर बनने के ललक में छात्र यहां एडमिशन ले लेते हैं। एमबीबीएस की एक सीट की कीमत बेंगलुरु में एक करोड़ रुपए और यूपी में 25 से 35 लाख रुपए होती है। रेडियोलाॅजी और डर्मेटोलाॅजी की एक सीट तीन करोड़ रुपए तक में बिकती है। इन सीटों के लिए पहले आओ-पहले पाओ का प्रावधान होता है। पहले से बुक करने पर कीमत में छूट भी दी जाती है। हालांकि मेडिकल प्रवेश परीक्षा के नतीजे घोषित होने पर प्राइवेज कालेजों में सीटों की कीमत दोगुनी हो जाती है। केवल एमबीबीएस की सीटें हर साल नौ हजार करोड़ रुपए में बिकती हैं। डीम्ड यूनिवर्सिटी या प्राइवेट कालेज अपने एंट्रेंस एग्जाम खुद कराने का दावा करते हैं ताकि मेरिट के आधार पर छात्रों का चयन हो। हालांकि कई राज्यों में इसका खुलासा हो चुका है कि पैसे वाले उम्मीदवारों को कम नंबर आने या एग्जाम में नहीं बैठने पर भी सीटें मिल जाती हैं।


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