नरेंद्र ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हिमाचल प्रदेश के जिला मण्डी में करसोग उपमंडल शिमला करसोग मार्ग बलिन्डी गांव से मात्र 4 किलोमीटर दूर मौजूद है। एक दिव्य स्थल काण्डा, जो इतिहास् में डैणा काण्डा के नाम से जाना जाता था। देओ खनिषरू का नाम यहाँ पर मौजूद देवदार के विशाल वृक्षो में लगने वाले खिशरू के कारण पड़ा।
गांव के मध्य में महासू पुत्र देओ खनिषरू की 3 मंजिला कोठी है। 100 मीटर की दूरी पर ही देओ खनिषरू का मूल देहुरा है, जिसमे देवता पिंडी रूप में विराजमान है। देवता की कोठी बहुत प्राचीन है। यहाँ पर संक्राति के शुभ अवसर पर गुरू हिरा लाल चावल के दानों की गणना के अनुसार लोगो के दुःख का निवारण करते हैं।
गांव के बुजुर्ग बताते है देओ खनिषरू देव महासू के पुत्र है व एक साथ सात विभन्न रूपो में विभक्त हो सकते है। गांव में जब भी कोई अजनबी या तांत्रिक बुरे विचार से कृत्यों से आता है, तो देओ खनिषरू डायनों का रूप धारण कर के उन्हें अपना चमत्कार दिखाते है, जिस कारण ही इस गांव को लोग डैणा काण्डा कहते हैं। तांत्रिक पूजा के लिए प्रसिद्ध देओ खनिषरू की शक्ति का भान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज भी अजनबी लोग यहाँ जाने से पहले एक बार विचार अवश्य कर लेते है। देवता का मुख्य रजत मैहरा पिता देओ महासू के रथ में सदा सुशोभित रहता है।
देओ खनिषरू के दो बड़े भाई भी है, जिसमे देओ मशीशर निहरी, देओ धड्यास सलाना में है। वहाँ पर भी देओ खनिषरू की पूजा हर मास की संक्रांति होती है। करसोग क्षेत्र के प्राचीन देव् स्थानों की श्रेणी में काण्डा का नाम अग्रणी है। काण्डा गांव के ही मूल निवासी ललित कुमार वर्मा, पूर्ण ठाकुर, पंकज वर्मा, देओ महसू के मुख्य गुरू वेद प्रकाश शर्मा, देओ खनिषरू के गुरू हिरा लाल बताते हैं की देओ खनिषरू के मूल देहुरा का जीर्णोद्धार वर्ष 2019 में पूर्ण किया था। जिस समय देवता अपने साक्षात् रूप में प्रकट हुए थे व देवता का पिंडी रूप का श्री विग्रह दर्शाता है कि जिस समय मानव मूर्ति कला में निपुण भी नही था, उस समय से पूर्व ही देवता की पूजा पिंडी रूप में आरम्भ हो चुकी थी, जो यहाँ की प्राचीनता को दर्शाती है।
संस्थापक देव समाज समिति करसोग
मण्डी हिमाचल प्रदेश
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