छत्रप्रभाकरः (13) .............2-क्षत्र वृतान्त


 


गतांक से आगे.....
राजा शिवप्रसाद सीएसआई लिखित इतिहास तिमिर नाशक तृतीय खण्ड़  से उद्धृत मिथ्या कल्पना की मिसाल। अभी कुछ बहुत दिन नहीं हुए काठियावाड़ में पोरबन्दर अर्थात सुदामापुर के पूंछड़िया राजा ने उदयपुर वाले की लड़की चाही थी, उदयपुर के राजा ने वंशावली पूछ भेजी, तब तो तरद्दुद पैदा हुआ। भाटों पर ताकीद की गई कि जल्द वंशावली दाखिल करें। भाट घबराये, राजा खानदानी न था। वंश का पता दस-पांच पुश्त से आगे न चल सका। राजा ने भाट को धमकाया। भाट ने कुछ दिन की मोहलत लेकर एक अर्जी इस मजमून की पेश की कि अन्नदाता मैंने देवी जी के मन्दिर में धरना दिया था, जो आठ दिन निराहार निर्जल रहने के बाद देवी जी ने स्वप्न दिया है कि आपके वंशकर्ता साक्षात् हनुमान हैं। लंका जाते समय समुद्र में पसीना गिरा, मगर के मादे ने निगला। वह गर्भवती होके समुुद्र में बहती हुई काठियावाड़ के किनारे आ लगी। वहां दुमदार बच्चा दिया, उसकी औलाद आप हैं। आगे आपके खानदान में सबके पूंछ होती थी, इसलिए पूंछड़िया नाम पड़ा। अब कुछ दिनों से कलिकाल के प्रभाव से मौकूफ होे गयी। राजा ने खुश होकर भाट को बहुत सा इनाम दिया और वह कागज उदयपुर भेज दिया। यद्यपि राजा ने लड़की तो न दी, जवाब में केवल इतना ही कहला भेजा कि जिसका बाप बंदर और मां मगर, उसकी संतान को उदयपुर के राजा की लड़की नहीं ब्याही जा सकती। हमारे मुल्क में राजाओं की वंशावली और उनकी लड़ाईयों को याद रखना, ब्राह्मणों के सुपुर्द था। अब भी रजवाड़ों में भाटों का यही काम है। इसी बात की रोटी खाते हैं। भाट भट्ट का अपभ्रंश मालूम होता है।
(क्रमशः)


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