नारी  सम्मान 


(कल्पना शर्मा), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

आहत हूँ,  दिल दहल उठा है,  डॉक्टर प्रियंका के दर्द को महसूस करके। क्या बीती होगी उसकी आत्मा पर, जब उसकी आबरु को दरिंदे छलनी कर रहें होंगें। कोस रही होगी वो खुद को लड़की होने पर, मन में क्षण भर के लिए आया तो होगा कि ऐसे मरने से तो माँ ने कोख में ही मार दिया होता तो अच्छा होता। यही पीड़ा रही होगी न जाने कितनी ही निर्भयाऔर गुड़िया की। ये  कैसी विडंबना है कि  एक परिवार,  समाज और देश की उन्नति की परिकल्पना भी जिस नारी के बिना संभव नहीं उसकी इस हालत के लिए यही समाज और देश जिम्मेदार है। क्यों   यह वारदातें ठहरने का नाम  नहीं ले रहीं। ऐसी क्या गड़बड़ है हमारी सामाजिक व्यवस्था में कि हर बार हैवानियत की हद पार हो रही है। हमारे राजननेताओं को भी इन भावनात्मक मुद्दों  को राजनैतिक रंग नहीं देना चाहिए। लेकिन दोषारोपण कोई समाधान नहीं , ज़रूरत है मानसिकता के स्तर पर काम करने की और इस के लिए नैतिक मूल्यों की बात भर कर लेना या फिर महिला दिवस के अवसर पर नारी की महानता का गुणगान कर लेना कतई भी नारी का सम्मान करना नहीं कहलाता। नारी का सम्मान तो एक ऐसी संपदा है जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी हर एक को संजो के रखना चाहिए। बातों से नहीं अपितु यह व्यवहार और आचरण से झलकना चाहिए। हम उस देश में रहते हैं जहां प्राचीन काल से नारी के त्याग और बलिदान की गाथाएं सुनने को मिलती हैं। नारी की महानता का गुणगान तो देवता भी करते हैं,  फिर आज की भारतीय चेतना को क्या हो गया है? 

भारत एक विस्तृत व विविधता वाला देश है, लेकिन जब शरमशार करने वाली घटनाएं लगभग हर कोने से सुनने को  मिलती हैं, तब लगता है  कि  मानसिकता में कोई विविधता नहीं। समस्या मानसिकता की है और इसी को बदलने की दिशा में प्रयास होना चाहिए। समाज के हर वर्ग को बदलना होगा और जो लोग इस बात को समझते हैं,  उनका योगदान महत्वपूर्ण है। अभिवावकों और अध्यापकों की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही। अभिभावक घर पर बच्चों से सामाजिक बुराईयों के बारे में  खुलकर चर्चा करें और अध्यापक स्कूलों में। शिक्षा का उद्देश्य ही सही और गलत की पहचान होना है, अगर हमारा समाज इसकी पहचान करने में सक्षम नहीं तो कैसी शिक्षा गृहण कर रहें हैं हम। कानून और दंड व्यवस्था का कार्यान्वयन सही तरीके से होना भी बहुत आवश्यक है।यहाँ जरूरत है कि हर अधिकारी अपना काम ईमानदारी और पारदर्शिता  के साथ करे।  आज हम अपने समाज में  भय के साथ जी रहे हैं, उसमें दंड और कानून व्यवस्था का सुचारु कार्यान्वयन न होना ही तो है। युवाओं को दोष देने से पहले उनके बड़ों  को नैतिक मूल्यों की कसौटी पर खरा उतरना होगा। नारी शक्ति को सशक्त करने के लिए पुरुष भी आगे आएं।  सार्वजनिक स्थानों पर हो रही छेड़छाड़ की घटनाओं को नज़र अंदाज न करें ब्लकि उस महिला का साथ दें, जो उस समय मुसीबत में हो।

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