तो से नैना मिलाइके ( हास्य व्यंग्य)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
तीलचट्टी चाची गोरी चिट्ठी अप्सरा थी बहुत ही चालू थी जो विधवा एवं बांझ होते हुए भी जमकर पाउडर टीकी बिंदी लगाकर ठुमक ठुमक कर चलती थी। तिलचट्टी के दिवाने कंवारे रंडवा बुड्ढे गाबरू विवाहित जवान भी थे तो महिलाओं एवं युवतियों में भी काफी लोकप्रिय थी। तरह तरह के पाखंड एवं नौटंकी से लोगों को अपने जाल में फंसाकर उल्लू सीधा कर लेती थी। 
सोमवार बुधवार एवं शनिवार को घर में सुबह से दोपहर एवं शाम से देर रात तक एक पाटे पर काला कपङा बिछाकर रखती उस पर लोग फल गुङ अनाज वस्त्र एवं अन्य समान चढाकर जाते। दो मटके रोजाना दुध के भर जाते। खुले बालों में बैठकर कहती कि,,तो से नैना मिलायके,, आपस में नजर मिलाती फिर अचानक बंद कर लेती। लोग मनौती अपने आप मांग कर चढावा एवं नगदी चढा जाते। 
सारा समान इकट्ठा करके एक स्टोर में रख दिया जाता।  तिलचट्टी का दुतला मकान मुफ्त में मिस्त्री मजदूर बना गए। उसके घर के सामने सोमवार बुधवार एवं शनिवार को तरह तरह के प्रसाद पूजन सामग्री की दुकानें लगने लगी। चाची अब लखपति बन गयी वही लोगों की भीड़ लगने लगी। तिलचट्टी जब मान सम्मान एवं धन एश्ववर्य से संतुष्ट हो गई तो सोचा कि इस उम्र में कुछ दान धर्म जनसेवा करनी चाहिए तो लंगर लगाना श्रीमद्भागवत एवं रामायण पाठ कराने के साथ साथ अनेक जनसेवा के प्रकल्प शुरू कर दिए। 
     आज तिलचट्टी सेवा सदन के उद्घाटन के लिए स्वामी नमो नरायण महाराज आकर पूजा अर्चना की तथा लोगों को बताया कि अपने सतित्व की रक्षा के लिए उसने ऐसा किया लेकिन जब उसे समझ में आया तो सबकुछ त्याग करने के साथ मेरी शिष्या बन गयी। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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