माता-पिता
रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 
मुझे खाना ना खाते देख 
अपनी भूख मिटाते चले जाते थे,
मेरे तन को घटता देख वो 
अपनी उम्र को घटता हुआ पाते थे।
मन जब मेरा व्याकुल हो जाता था, 
वो देखते ही पहचान जाते थे,
लेकिन आकुलतावश मुझसे कुछ 
वो कह भी नहीं पाते थे।
इज्जत, प्रेम, ईमानदारी के तौर तरीके 
वो बेहतरीन सिखाते थे,
पर मुझ किंकर को कहाँ 
वो शब्द उस वक्त समझ आते थे,
आज दूर हूँ तो बहुत याद करती हूँ 
अपने परिवार को,
लेकिन समय की कलाकृति में ऐसे बिछुड़े,
अब तो हम सिर्फ जी रहे हैं,
जिंदादिली से तो उनकी छाँव में ही जी पाते थे।
जयपुर, राजस्थान
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