राजीव डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कभी हंसा देती है
कभी रुला देती है
जो खुद से ही
मोहब्बत करवा देती है।
कभी मेरे गुनाहों को दफना देती है
माँ है मेरी काली
जो काबिल-ऐ-तारीफ
शख्स मुझे बना देती है।
कभी अंतिम चरण में भी
नया आरंभ कर देती है
माँ है मेरी काली
जो हर संकट में मुझे
अपनी गोद में उठा लेती है।
कभी कर्म को ही धर्म बना देती है
माँ है मेरी काली
जो नादान बालक समझकर
मेरे हर गुनाह को भूलाकर
सीने से मुझे अपने लगा लेती है।
माँ है मेरी काली
कभी जीवन जीना सिखा देती है
कभी आदि से अंत तक ले जाती है
कभी धर्म का राह दिखा देती है
जो खुद से ही
मोहब्बत करवा देती है।
कभी मेरे गुनाहों को दफना देती है
माँ है मेरी काली
जो काबिल-ऐ-तारीफ
शख्स मुझे बना देती है।
कभी अंतिम चरण में भी
नया आरंभ कर देती है
माँ है मेरी काली
जो हर संकट में मुझे
अपनी गोद में उठा लेती है।
कभी कर्म को ही धर्म बना देती है
माँ है मेरी काली
जो नादान बालक समझकर
मेरे हर गुनाह को भूलाकर
सीने से मुझे अपने लगा लेती है।
माँ है मेरी काली
कभी जीवन जीना सिखा देती है
कभी आदि से अंत तक ले जाती है
कभी धर्म का राह दिखा देती है
भाषा अध्यापक राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गाहलिया (कांगड़ा) हिमाचल प्रदेश