शिवपुराण से....... (385) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहां चलने के लिए अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के साथ प्रस्थान

गतांक से आगे.......

सती बोली-प्रभो! मैंने सुना है कि मेरे पिताजी के यहां कोई बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा है। उसमें बहुत बड़ा उत्सव होगा। उसमें सब देवर्षि एकत्र हो रहे हैं। देवदेवेश्वर! पिताजी के उस महान् यज्ञ में चलने की रूचि आपको क्यों नहीं हो रही है? इस विषय में जो बात हो, वह सब बताइये। महादेव! सुहृदों का यह धर्म है कि वे सुहृदों के साथ मिलें-जुलें। यह मिलन उनके महान् प्रेम को बढ़ाने वाला होता है। अतः प्रभो! मेरे स्वामी! आप मेरी प्रार्थना मानकर सर्वथा प्रयत्न करके मेरे साथ पिताजी की यज्ञशाला में आज ही चलिये।

सती की यह बात सुनकर भगवान् महेश्वरदेव, जिनका हृदय दक्ष के वाग्वाणों से घायल हो चुका था, मधुरवाणी में बोले-देवि! तुम्हारे पिता दक्ष मेरे विषय द्रोही हो गये हैं। जो प्रमुख देवता और श्रषि अभिमानी, मूढ़ और ज्ञानशून्य हैं, वे ही सब तुम्हारे पिता के यज्ञ में गये हैं। जो लोग बिना बुलाये दूसरे के घर जाते हैं, वे वहां अनादर पाते हैं, जो मृत्यु से भी बढ़कर कष्टदायक है। अतः प्रिये! तुमको और मुझको तो विशेष रूप से दक्ष के यज्ञ में नहीं जाना चाहिए (क्योंकि वहां हमें बुलाया नहीं गया है।) यह मैंने सच्ची बात कही है।

महात्मा महेश्वर के ऐसा कहने पर सती रोषपूर्वक बोलीं- शम्भों! आप सबके ईश्वर हैं। जिनके जाने से यज्ञ सफल होता है,                

(शेष आगामी अंक में)

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