शिवपुराण से....... (384) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

दक्षयज्ञ का समाचार पा सती का शिव से वहां चलने के लिए अनुरोध, दक्ष के शिवद्रोह को जानकर भगवान् शिव की आज्ञा से देवी सती का पिता के यज्ञमण्डप की ओर शिवगणों के साथ प्रस्थान                        

गतांक से आगे....... ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! जब देवर्षिगण बड़े उत्साह और हर्ष के साथ दक्ष के यज्ञ में जा रहे थे, उसी समय दक्षकन्या देवी सती गन्धमादन पर्वत पर चॅंदोवेसे युक्त धारा गृह में सखियों से घिरी हुई भांति-भांति की उत्तम क्रीडाएं कर रही थीं। प्रसन्नतापूर्वक क्रीडा में लगी हुई देवी सती ने उस समय रोहिणी के साथ दक्ष यज्ञ में जाते हुए चन्द्रमा को देखा। देखकर वे अपनी हितकारिणी प्राणप्यारी श्रेष्ठ सखी विजया से बोलीं-मेरी सखियों में श्रेष्ठ प्राणप्रिय विजये जल्दी जाकर पूछ तो आ, ये चन्द्रदेव रोहिणी के साथ कहां जा रहे हैं?

सती के इस प्रकार आज्ञा देने पर विजया तुरंत उनके पास गयी और उसने यथोचित शिष्टाचार के साथ पूछा-चन्द्रदेव! आप कहां जा रहे हैं? विजया का यह प्रश्न सुनकर चन्द्रदेव ने अपनी यात्रा का उद्देश्य आदरपूर्वक बताया। दक्ष के यहां होने वाले यज्ञोत्सव आदि का सारा वृतान्त कहा। वह सब सुनकर विजया बड़ी उतावली के साथ देवी के पास आयी और चन्द्रमा ने जो कुछ कहा था, वह सब उसने कह सुनाया। उसे सुनकर कालिका सती देवी को बड़ा विस्मय हुआ। अपने यहां सूचना न मिलने का क्या कारण है, यह बहुत सोचने-विचारने पर भी उनकी समझ में नहीं आया। तब उन्होंने पार्षदों से घिरे अपने स्वामी भगवान् शिव के पास आकर भगवान् शंकर से पूछा। 

(शेष आगामी अंक में)

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