बस एक बार

डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

एक बार
बस एक बार
खोल दो घर के सारे दरवाजे, 
खिड़कियाँ और झरोखे....
आने दो - जाने दो
हवाओं को
खबरों को
लोगों को....।
घुल जाने दो 
आस पास के परिवेश में
मिल जाने दो 
सब कुछ मनचाहे वेश में।
रोको मत
टोको मत
छोड़ दो 
तराजू की डंडी को
मत देखो
उठते-गिरते पलड़े को।

फिर.....
फिर टूटेंगी
घड़े की दीवारें
और....
भीतर- बाहर सब एक होगा
पानी भी
पर्यावरण भी
परिवेश भी
हवा और खबरें भी
सुख और दुःख भी
सरहद और समस्याएँ भी
संस्कृति, सभ्यता और साहित्य भी।

एक बार
बस एक बार
बंधन ढहाकर
आगत को अपनाकर
दिलों को मिलाकर
अतीत भुलाकर
देखो तो सही
बस एक बार।
मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय

Post a Comment

Previous Post Next Post