डॉ. ममता बनर्जी मंजरी, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कविवर तुम्हारी लेखनी की क्या करूँ मैं वर्णना।
छलके तुम्हारी लेखनी से नित्य नव अभिव्यंजना।
जग को सदा नूतन दिशा देना तुम्हारा काम है।
अवधेश है शुभ नाम अरु वाराणसी में धाम है।।
विद्वान तुम गुणवान तुम धर्मज्ञ धीरजवान हो।
साहित्य के आकाश का उज्ज्वल प्रखर दिनमान हो।
तुम धार समरसता बहाकर सींचते परिवेश को।
तुम पूजते हो भक्ति पूर्वक सर्वदा अवधेश को।।
शिवपुत्र के तुम पुत्र राघववंश के तुम नाज हो।
तुम पुत्र के माथे सुसज्जित चमचमाते ताज हो।
तुम प्रियतमा के भाल पर रक्ताभ शुचि सिंदूर हो।
प्रियपात्र हो प्रियकांत हो साहित्य सम्मत नूर हो।।
करते सृजन साहित्य तुम दिन रैन हो तल्लीन यूँ।
दिनकर निराला जायसी तुलसी रचे साहित्य ज्यूँ।
चलती तुम्हारी लेखनी विविधानि छंदों पे सदा।
तुम ध्यान देते हो विषयगत सर्जना में सर्वदा।।
तुम गीत-गजलों से सजाते कुंज की नित क्यारियाँ।
तुम ही मिटाते मुक्तकों से राह की दुश्वारियाँ।
साहित्य रस का मेह जब झम-झम बरसता धार बन।
यूँ खिलखिलाता मरुधरा में सर्वदा पतझर चमन।।
तुम जोड़ते हो विश्व को सद्भावना अरु प्यार से।
तुम नाश करते शत्रुओं का लेखनी के वार से।
मन में लिए उत्साह तुम बढ़ते सदा सद राह में।
लेकर असीमित शक्ति हनुमत के सरीखा बाँह में।।
बढ़ते रहो आगे निरंतर शारदे माँ साथ है।
माना बहुत दुर्गम कँटीला लेखनी का पाथ है।
परिपूर्ण हो यश मान से कविवर तुम्हारी जिंदगी।
यह लेखनी चलती रहे कायम रहे संजीदगी।।