राजनीति की भेट चढ़ता उत्तराखण्ड़ का चर्चित अंकिता हत्याकाण्ड़

सुनील वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

उत्तराखंड के चर्चित अंकिता हत्याकांड को लेकर आजकल हंगामा बरपा है। आरोपियों की बेल की अर्जी लगाने वाले रिमांड एडवोकेट ने इस केस को लड़ने से मना कर दिया है। एडवोकेट ने पहले कोटद्वार न्यायायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी भावना पांडे की अदालत में बेल अर्जी लगाई थी। अब उन्होंने कहा कि मामले की संवेदनशीलता देखते हुए उन्होंने आरोपियों की बेल की अर्जी का प्रार्थना पत्र वापस ले लिया है। सारे घटनाचक्र को देखते हुए मुख्यमंत्री और प्रशासन को इन आरोपियों के रिमांड के पीछे के योजित षड़यंत्र को भी समझना पड़ेगा, क्योंकि अपने ही बने ये विरोधी इस ताक में हैं कि आरोपियों का रिमांड हो और पब्लिक पुलिस कस्टेडी में इन आरोपियों को मार डालें जिससे लाॅ एंड आर्डर की समस्या खड़ी हो जाये, जिसे सम्भालना पुलिस प्रशासन के लिए मुसीबत बन जाये यानी स्थिति आऊट फ कंट्रोल हो जाये। ये लोग पब्लिक को अपने हिसाब से हांक रहे हैं।

दोस्तों! ये पहला मामला है, जिसमे बीजेपी के लोग खुद अपनी सरकार के खिलाफ हैं और पब्लिक को अपने हिसाब से हांक रहें हैं। ये लोग और कोई नही हैं, बल्कि खुद उत्तराखण्ड़ की भाजपा सरकार के कुछ मंत्री हैं, जिनमें दो तो बीजेपी के ही पूर्व मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले भी जिनके नाम एसएसएससी भर्ती घोटाले में बदनाम हो चुके हैं, जिसके चलते विधानसभा अध्यक्ष रितू खंडूरी ने मंत्री सिफारिश कोटे की सभी भर्तियों को रद्द कर भी दिया था। इस मामले में कई गिरफ्तारी भी हुई और लोगो की नौकरी भी गई हैं। इससे पहले इन मंत्रियों का नम्बर आता, इन्हें अंकिता मर्डर की आड़ में संजीवनी मिल गई। इसके साथ ही इन्होंने अपने सिपहसलारों के द्वारा मीडिया के माध्यम से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अस्थिर करने का प्लान भी सेट कर दिया।

अब आप पूरा मामला देखिये! अंकिता की हत्या हुई, हत्यारे पकड़ लिए गये, शव भी बरामद हो गया और निशानदेही भी हो गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डेमेज कंट्रोल करते हुए 25 लाख नगद देने का वादा भी कर लिया। इसके साथ ही जनता के गुस्से को देखते हुए जिस रिजार्ट में अंकिता काम करती थी, उसपर बुलड़ोजर भी चलवा दिया। मतलब मुख्यमंत्री और उनके पुलिस-प्रशासन ने ऐसा कोई काम नही छोड़ा, जिससे जनता में कोई आक्रोश पैदा होता। इतना सब होने के बावजूद मुख्यमंत्री धामी के कथित सिपेहसलार को यह बात नागंवार गुजरी, क्योंकि वे तो हर हलात में ये चाहते थे कि बीजेपी आलाकमान को ये मैसेज जाये कि उतराखंड को संभालना धामी के बस की बात नही हैं। 

मजे की बात देखिए! जिन लोगो ने बीजेपी के मंत्री जी की फेक्ट्री में आग लगाई, अब वे ही ये ईशू बना रहे हैं कि साक्ष्य मिटाने के लिए रिजोर्ट को तोड़ा गया है। इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात तो ये हैं कि मुख्यमंत्री के कथिल सिपहसलार एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के उन चार-चार डाक्टरों के पैनल पर ऊंगली उठा रहे हैं, जिन्होने अंकिता का पोस्टमार्टम किया था। ये जबरन बलात्कार की छछुंदर मुख्यमंत्री और डाॅक्टरों के मुहं में घुसेड़ने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं।

जिस लड़की ने अपनी इज्जत की खातिर अपनी जान दे दी, आज सबसे अधिक अनुशासित पार्टी होने का दम्भ भरने वाली पार्टी के लोग ही उसकी इज्जत के साथ राजनीति कर रहे हैं। ऐसे में उसकी आत्मा क्या कहेगी, जिस अस्मत को बचाने के लिए उसने अपनी जान दे दी, उसकी उसी इज्जत को सबने मिलकर उछाल दिया और अभी इसी काम में ही लगे हुए हैं।

अरे! कुछ और नहीं तो उस लड़की को देखो, उसकी भावनाओं पर थोड़ा गौर करो और उसके उन मैसेज को पढ़ो, जो उसने अपने दोस्त को लिखा था कि ‘‘10000 रूपये के लिए अपने जमीर को नही बेचुगीं, मैं अपनी इज्जत का सौदा नही करूंगी...’’

पूरा घटनाक्रम देखकर समझ ही नहीं आ रहा है कि जनता इन दुर्दान्त हत्यारों को बचाना चाहती हैं या उन्हें सजा दिलाना चाहती हैं। उफ्फ ये राजनीति! ये इस विभत्स हत्या का राजनीतिकरण नही है तो क्या हैं? इससे ज्यादा अफसोस क्या होगा कि बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा देने वाली बीजेपी के किसी विधायक या नेता ने अंकिता के परिवार की आर्थिक सहायता की कोई घोषणा तक नहीं की है। हां! एक निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने जरूर कुछ दिलासा देने वाला की घोषणा की है, उन्होंने अपनी सैलरी से अंकिता के परिवार को पचास हजार रूपये की मदद देने का आश्वासन दिया है। 

वकील साहब ने तो सोची-समझी राजनीति के तहत पहले हत्यारो की पैरवी के लिए पहले हामी भरी और अब मुकर गये, ये राजनीति नही है, तो क्या हैं? उन्हें ये बात अच्छी तरह पता है कि इस केस में आरोपियों की पैरवी के लिए सरकार को तो कोई न कोई एडवोकेट मुहैया कराना ही पडेगा। मुद्दा जिंदा रखना है, न्याय मिले या न मिले, इससे इन लोगो कोई मतलब नही। अब तो डर इस बात का भी है कि आरोपियों ने तो अंकिता के जो किया, उसे तो किसी भी कीमत पर माफ ही नहीं किया जा सकता, लेकिन अब जो कथित सफेदपोश अंकिता की इज्जत तार-तार करने में लगे हैं, उन्हें कौन रोकेगा और कौन उन्हें इस विभत्सता के लिए दण्ड़ित करेगा।

वरिष्ठ पत्रकार देहरादून, उत्तराखण्ड़

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