डॉ अ कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मैनें देखी
शब्दों में
एक लडकी
किसी पुस्तक के पन्ने पर
और देखा
एक अप्रकाशित चित्र
उस लडकी का
शब्दों के घेरे में।
वह लडकी
वेदना थी जिसके चेहरे पर
गरीब होने की
विवशता थी भाग्य में
केले बेचने की
बचपन
जिसका खो गया था
चलती रेल के डिब्बों में।
मैनें देखा
एक दर्द
शब्दों में
उस लडकी के प्रति
जो विवश है
बचपन को
मजबूरी की गोद में
भेजने के लिये
खिलौनों से
खेलने की जगह
फल बेचने के लिये।
आओ
इस दर्द और वेदना को
कुछ नये शब्द दे दें
चिडियों के कोमल पंखों को
बाज से सशक्त
नये पंख दे दें।
दर्द की लहर को
सत्ता के गलियारे पर
खटखटा दें।
अखबारों, समाचारों की
सुर्खी बना दें।
कम से कम
एक लडकी
वेदना से उबर जायेगी
शायद
कल किसी स्कूल चली जायेगी।
कोई नेता
अथवा
कोई सामाजिक संस्था
अपने नाम के लिये ही सही
उसका खर्च उठायेगी।
फिर वह एक लडकी
जब समय के साथ
स्त्री बन जायेगी
निश्चित रूप से
एक परिवार को
शिक्षित बनायेगी
और
हमारी लेखनी भी
अपने सार्थक प्रयास पर
गर्व से इठलायेगी।
53, महालक्ष्मी एनक्लेव मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश