समर्पण

अ कीर्ति वर्द्धन,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

जो कंटक पथ पर चला नहीं है,
जो विपदाओं से लड़ा नहीं है,
विजय पथ का सुख क्या जाने,
जो दुविधाओं में पला नहीं है।

सुविधाओं में पलने वाले,
हर मुश्किल से डरने वाले,
वो क्या जाने सुख क्या होता,
सुख की छाया चलने वाले।

चलो धूप में छाया का सुख,
धन से निर्धन माया का सुख।
पला नहीं जो गोद में माँ की,
माँ ममता या आया का सुख।

तप कर सोना कुन्दन होता,
विनम्र भाव से वन्दन होता।
मिला हमें जो कुछ भी जग में,
प्रभु चरणों में समर्पण होता।
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

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