हवलेश कुमार पटेल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आजाद भारत के इतिहास में बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड सरकार की नीतियों पर विश्वास करके धोखा खाने वाला औद्योगिक संगठन बनकर रह गया है। सरकार की नीतियों पर विश्वास करके जोखिम उठाने के कारण आज हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि भारतीय स्टेट बैंक ने आईबीसी के तहत वित्तीय कर्जदाता के तौर पर एनसीएलटी की इलाहाबाद पीठ में अभी हाल ही में 17 अगस्त को बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड को दिवालिया घोषित कराने के लिए याचिका दाखिल कर दी है। याचिका दायर होते ही बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड का शेयर 18 प्रतिशत टूट गया। सूत्रों की माने तो बजाज हिंदुस्थान पर बैंक के 4800 करोड़ की देनदारी है, जिस पर 750 सौ करोड़ वार्षिक केवल ब्याज ही देय होता है।
बता दें कि वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन 29वें मुख्यमंत्री के रूप में मुलायम सिंह यादव ने बदहाली के दौर से गुजर रहे गन्ना किसानों की दिशा व दशा सुधारने के लिए गन्ना व चीनी उद्योग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया था। इसी निर्णय के तहत मुलायम सिंह यादव ने शुगर इंडस्ट्री को राहत पैकेज देने के लिए शुगर प्रमोशन पाॅलिसी लागू की थी, जिससे देश के उद्योगपतियों को उत्तर प्रदेश की शुगर इंडस्ट्री में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। तत्कालीन मुलायम सरकार ने शुगर प्रमोशन पाॅलिसी 2004 के तहत चीनी उद्योग को शीरा विक्रय पर व्यापार कर में छूट, शीरा पर प्रशासनिक व्यय की दर शून्य, नाॅनलेवी चीनी पर प्रवेश कर में छूट, गन्ना क्रय पर क्रय कर में छूट, चीनी मिल के स्थापना हेतु क्रय की गई भूमि के ट्रांसफर पर निबंधन शुल्क व स्टांप शुल्क में छूट, गन्ना क्रय पर देय समिति कमीशन की प्रतिपूर्ति, बाहय गन्ना क्रय केंद्रों से चीनी मिल परिसर तक अतिरिक्त गन्ना परिवहन व्यय की प्रतिपूर्ति, प्रदेश के बाहर वह अंदर चीनी विक्रय हेतु किए गए परिवहन की प्रतिपूर्ति व पूंजी निवेश पर 10 प्रतिशत पूंजी उपादान की प्रतिपूर्ति की सुविधा प्रदान की थी। राज्य सरकार ने नीति के पक्ष-विपक्ष पर विचार करने के बाद नीति की घोषणा की थी और नीति को किसी अल्पकालिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि चीनी क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास और राज्य की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपनाया गया था। सरकार की नीति के अनुसार 500 करोड़ का निवेश करने वाली कम्पनी को इस योजना का लाभ 10 साल की अवधि के लिए मिलना था।
नीति की शुरुआत करते समय राज्य सरकार ने परिकल्पना की थी कि इसके तहत चीनी मिलों और सहायक परियोजनाओं की स्थापना से पेराई क्षमता व बिजली उत्पादन में वृद्धि होगी और वर्तमान निकासी क्षमता 40 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगी। इसके साथ ही नया उद्योग लगभग 30000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और लगभग 100000 व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करेगा। चीनी नीति से 8 लाख किसानों को बेहतर आजीविका भी मिलेगी। इसके अलावा गन्ने की खेती में वृद्धि होगी और किसानों को बेहतर कीमत का भुगतान किया जा सकेगा। राज्य सरकार की अपनी नीति के बारे में यह राय थी कि नीति से राज्य की अर्थव्यवस्था और आम जनता को दीर्घकालिक लाभ होगा। इससे भले ही राज्य को अल्पावधि में कुछ राजस्व की हानि हो, लेकिन छूट की अवधि समाप्त होने के बाद राजस्व में काफी वृद्धि होगी। इसके साथ ही इस तरह के निवेश से सहायक उद्योगों में वृद्धि होगी और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
जानकार बताते हैं कि मई 2007 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी हार गई और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी। मुख्यमंत्री बनते ही मायावती ने शुगर प्रमोशन पालिसी को रिव्यू करने की खानापूर्ति करते हुए इसे राज्य सरकार के खजाने पर बोझ माना और प्रदेश के गन्ना किसानों व शुगर इंडस्ट्री के हितों को दरकिनार करते हुए अपनी पूर्ववर्ती सपा सरकार द्वारा लागू की गई शुगर प्रमोशन पालिसी को चीनी नीति को तत्काल प्रभाव से वापस लेने के लिए 04 जून 2007 को एक अधिसूचना जारी करके इसे समाप्त कर दिया। शुगर प्रमोशन पाॅलिसी के अचानक ही समाप्त कर देने से शुगर इंडस्ट्री को भारी धक्का लगा। इतना ही नहीं मायावती सरकार ने गन्ना किसानों की वाहवाही बटोरने के लिए गन्ने के मूल्य में रिकाॅर्ड वृद्धि भी कर डाली। सरकार द्वारा लगातार लिए गए इन फैसलों ने शुगर इंडस्ट्री की कमर तोड़ने का काम कर दिया।
माया सरकार द्वारा गन्ना प्रोत्साहन नीति को खत्म करने के विरोध में चीनी मिलें कोर्ट भी गयी, वहां कोर्ट ने भी सरकार के खिलाफ तीखी टिपण्णी की। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिपण्णी में कहा कि राज्य सरकार को इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती कि वह अपने वादे से मुकर जाए और याचिकाकर्ता द्वारा किए गए पर्याप्त निवेश के बाद याचिकाकर्ता को कर छूट के लाभ से वंचित कर दे। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा राज्य में औद्योगिक विकास और रोजगार में वृद्धि के रूप में किए गए निवेश से राज्य सरकार को भी फायदा हुआ है, जो राज्य के व्यापक हित में है। नतीजतन प्रतिवादियों की ओर से की गयी कार्रवाई स्पष्ट रूप से अनुचित, मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार इस स्तर पर पीछे नहीं हट सकती और यह तर्क नहीं दे सकती कि चूंकि नीति को बंद कर दिया गया है, इसलिए याचिकाकर्ता को छूट अब उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस शबीहुल हसनैन की बेंच ने 11 शुगर मिलों की ओर से दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए टिप्पणी कि हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उक्त पॉलिसी को समाप्त करना, प्राकृतिक न्याय व वचन विबंधन के सिद्धांत के विपरीत है। कोर्ट ने 4 जून 2007 के पॉलिसी खत्म करने के शासनादेश को रद्द कर दिया व याची मिलों के दावों का परीक्षण करते हुए उन्हें लाभ देने का आदेश दिया।
शुगर इंडस्ट्री के जानकारों की माने तो 2004 का दशक गन्ना व गन्ना किसानों के लिए बेहद दुर्दशा का दौर था। गन्ना किसानों व गन्ने की दशा सुधारने के लिए मुलायम सिंह यादव ने सरकारी खजाने की परवाह नहीं करते हुए अभूतपूर्व शुगर प्रमोशन पाॅलिसी लागू की थी, लेकिन आने वाली सरकारों ने गन्ना व गन्ना किसानों के हितों के स्थान पर सरकारी खजाने को वरीयता दी और शुगर प्रमोशन पाॅलिसी को समाप्त कर दिया। सरकार की कथित रूप से इस धोखेबाजी का सबसे अधिक नुकसान बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड को हुआ, क्योंकि बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड ने सरकार की नीतियों पर भरोसा करते हुए बैंक को से मोटा कर्ज लेकर शुगर इंडस्ट्री में निवेश कर दिया था। अब उसे बैंकों को मोटी राशि ब्याज के रूप में भी अदा करनी पड़ रही थी।
जानकारों के अनुसार शुगर इंडस्ट्री के हितों को आर्थिक बदहाली के दौर में इस तरह से अनदेखा करना वास्तव में अन्याय की श्रेणी में आता है। शुगर इंडस्ट्री की आर्थिक बदहाली का आलम ये था कि मायावती सरकार ने सरकारी क्षेत्र की कई चीनी मिलों को नीजि क्षेत्र को ओने-पोने में बेच दिया था। ऐसे में शुगर प्रमोशन पाॅलिसी को वापिस लेने का निर्णय बेहद अदूरदर्शितापूर्ण व हास्यास्पद माना गया, लेकिन सरकार इन सभी बातों को दरकिनार कर दिया था। जानकार बताते हैं कि यह वही दौर था, जब चीनी उद्योग रिकाॅर्ड मंदी के दौर से गुजर रहा था। चीनी की रिकाॅर्ड मंदी, गन्ने के खरीद मूल्यों में रिकार्ड वृद्धि, बैंकों की भारी-भरकम देनदारी व सरकार का असहयोग हिंदुस्थान बजाज शुगर लिमिटेड पर कहर साबित हुआ और बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड की चीनी मिलों का घाटा बढ़ने लगा, जिसका नतीजा यह हुआ कि चीनी मिलों पर किसानों का गन्ना मूल्य का भुगतान पेंडिंग होता गया। बाद में चीनी मिलों की हालत कुछ सुधरी और धीरे-धीरे चीनी मिलों द्वारा किसानों का बकाया गन्ना भुगतान करने में तेजी आई और वर्तमान में अधिकतर चीनी मिलों ने गन्ना मूल्य का भुगतान अपडेट कर दिया है, लेकिन बजाज हिंदुस्थान की चीनी मिलों की स्थिति बाकी से अलग थी, क्योंकि बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड पर बैंकों की देनदारी का बड़ा पहाड़ था, जिसके चलते वह किसानों का बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान में चूक गई। सरकारों ने भी सहयोग करने के स्थान पर दमनकारी रुख अपनाया और बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड की चीनी मिलों के रिजर्व गन्ना क्षेत्र में भारी कटौती कर दी, जो बजाज हिंदुस्तान ग्रुप की चीनी मिलों पर एक कड़ा प्रहार साबित हुआ।
जानकार बताते हैं कि जब चीनी उद्योग में रिकाॅर्ड मंदी का दौर था तो आधुनिक तकनीक पर स्थापित की गई बजाज ग्रुप की चीनी मिलों ने रिकाॅर्ड उत्पादन किया, जिससे चीनी मिलो को मुनाफे के स्थान पर घाटा हुआ और जब चीनी उद्योग में तेजी का दौर आया तो सरकार ने बजाज चीनी मिलों के रिजर्व गन्ना क्षेत्र में भारी कटौती कर दी और चीनी मिलों को पूर्व में आवंटित रिजर्व गन्ना क्षेत्र का केवल एक तिहाई क्षेत्र ही आवंटित किया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि चीनी मिलों को उनकी पेराई क्षमता के अनुसार गन्ना नहीं मिल सका और चीनी का उत्पादन काफी घट गया, जिसके चलते चीनी मिलें अपेक्षित मुनाफा नहीं कमा पाई और किसानों के गन्ना मूल्य का भुगतान पेंडिंग होता चला गया। इस बीच बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड के एक सक्षम अधिकारी राकेश भरतिया ने स्थिति को संभालने के लिए अधिकतम गन्ना किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान कराने की एक पाॅलिसी लागू की, जिसके तहत गन्ना किसानों के गन्ना मूल्य का आंशिक भुगतान रोकना आरम्भ कर दिया। बजाज हिंदुस्थान प्रबन्धतंत्र के इस कदम का गन्ना किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और उन्होंने चीनी मिलों की सकारात्मक पहल को भी नकारात्मक दृष्टि से देखा। इसका कारण ये रहा कि बजाज हिन्दुस्थान का प्रबन्धतंत्र अपनी पाॅलिसी किसानों को सही से समझा नहीं पाया। इसके बाद गन्ना किसानों का आक्रोश बजाज हिंदुस्तान की चीनी मिलों के प्रति बढ़ने लगा और जगह-जगह आंदोलन भी शुरू हो गए। सरकार ने भी ओझी राजनीति व सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इन चीनी मिलों के प्रति प्रतिबंध कड़े कर दिए, जिससे स्थिति को सुधरने की राह में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई। अब बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड के सूत्रों की माने तो इस बार गन्ना सत्र आरंभ होने से पूर्व ही सभी किसानों का बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान होने की पूरी संभावना है। जानकार बताते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो बजाज हिंदुस्तान की चीनी मिल अपना पूर्ण गौरव प्राप्त कर लेंगी और आगामी पेराई सत्र में किसानों के गन्ना मूल्य का भुगतान अपडेट कर सकेंगी।
बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड का सुहाना सफर
वर्ष 1988 में हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड का नाम बदलकर बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड कर दिया गया और इसके साथ ही 8 चीनी मिलों की स्थापना भी की गई। चीनी मिलों की स्थापना में तेजी का आलम यह था कि जनपद मेरठ की किनौनी मिल रिकाॅर्ड समय 18 से 24 माह में बनकर तैयार हो गई थी। किनौनी चीनी मिल की पेराई क्षमता 96000 टीसीडी थी। इसके बाद बजाज हिंदुस्थान ग्रुप द्वारा चीनी मिलों की स्थापना और विस्तारीकरण का सिलसिला आरंभ हुआ जो अनवरत चल रहा है। कुशाग्र बजाज के नेतृत्व में बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड आज सरकारी नीतियों का शिकार होने के बावजूद किसानों की दिशा और दशा सुधारने में कामयाब रहा है।
जानकार बताते हैं कि 2006 में भैसाना शुगर मिल में केवल 400-450 किसान ही ट्रैक्टर-ट्राली से अपना गन्ना लाते थे, शेष किसान भैंसा-बुग्गी से ही अपना गन्ना लाते थे, लेकिन आज स्थिति उलट है। आज फैक्ट्री में पेराई सत्र के दौरान केवल 400-450 किसान ही भैंसा-बुग्गी से अपना गन्ना ढ़ोते हुए दिखाई देते हैं, शेष किसान अब ट्रैक्टर ट्राॅली से ही अपना गन्ना शुगर फैक्ट्री में ला रहे हैं। कुशाग्र बजाज के नेतृत्व में आज बजाज हिंदुस्थान शुगर लिमिटेड कोजन व डिस्टलरी आदि क्षेत्रों में भी अपने जौहर दिखा रहा है।
बता दें कि चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण उद्योगों में से एक है। राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है और गन्ना मुख्य नकदी फसल है। चीनी उद्योग लगभग 32 लाख किसानों, 1.6 लाख औद्योगिक श्रमिकों और एक करोड़ लोगों के लिए अप्रत्यक्ष रोजगार के रूप में आजीविका प्रदान करके राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आंकडे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश वर्तमान में देश में सबसे अधिक गन्ना उत्पादक और दूसरा सबसे अधिक चीनी उत्पादक राज्य है, जो देश के लगभग 42 प्रतिशत गन्ना और 28 प्रतिशत चीनी उत्पादन का हिस्सा है। गन्ने के उत्पादन का 58.5 प्रतिशत हिस्सा गुड़, खांडसारी व राब आदि के उत्पादन के लिए अन्य उद्योगों को दिया जाता है।
संवेदनशील व उत्साही उद्योगपति हैं बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड के चेयरमैन कुशाग्र नयन बजाज
बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड के चेयरमैन कुशाग्र बजाज को एक संवेदनशील और उत्साही उद्योगपति के रूप में जाना जाता है। वे हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड के संस्थापक चेयरमैन जमनालाल बजाज के प्रपौत्र व प्रख्यात उद्योगपति शिशिर बजाज के पुत्र हैं। उत्साह, जोखिम उठाने की क्षमता व नेतृत्व क्षमता का गुण उन्हें विरासत में ही मिला है। ये गुण ही उन्हें अन्य उद्योगपतियों से थोड़ा बेहतर बनाते हैं। उनमें अपने ग्रुप व परिवार का नाम बुलंदियों पर पहुंचाने का जुनून कूट-कूट कर भरा है। गन्ना किसानों की दुर्दशा को देखकर द्रवित होना और उनकी दशा व दिशा सुधारने के लिए शुगर इंडस्ट्री में बैंकों से मोटा कर्ज लेकर निवेश करना उनके जोखिम लेने के गुण को प्रदर्शित करता है।
वर्ष 2004 में शुगर प्रमोशन पाॅलिसी लागू होते ही उन्होंने भारी भरकम कर्ज लेकर शुगर इंडस्ट्री में मोटा निवेश किया था। शुगर प्रमोशन पाॅलिसी एकदम से समाप्त किए जाने के खिलाफ उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से जीते भी, लेकिन सरकारों ने कोर्ट के आदेशों को भी धता बता दी और उन्हें आज तक लागू नहीं किया। यदि सरकार की नीतियां सही चलती रहती तो कुशाग्र बजाज इतने उत्साहित थे कि एक बड़े ग्रुप की दसों चीनी मिलों पर बजाज हिन्दुस्थान का बोर्ड लगा होता।
सरलता, सौम्यता व व्यवहार कुशलता की मिसाल हैं भैंसाना शुगर मिल के उपाध्यक्ष जेबी तोमर