डॉ.मिली भाटिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मैं डॉक्टर मिली भाटिया आर्टिस्ट हूँ। मैंने 2013 में चित्रकला में अपना शोध प्रबंध पूरा करके राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में 19 अक्टूबर 2013 को सबमिट किया था। मेरे शोध का विषय भारतीय लघुचित्रों में देवियों का अंकन था। इस विषय पर शोध करने का मेरा सर्वप्रमुख मक़सद यही है कि नारी रूपी देवी की स्तिथि में सुधार हो। मेरे इस प्रयास से अगर थोड़ा भी सुधार हो स्का तो मेरा इस विषय पर शोध करना सार्थक होगा। शास्त्रों में स्पष्ट किया गया है कि देवी से ही सारी सृष्टि है। नारी के बिना ये सृष्टि ही नहीं है, फिर भी नारी रूपी देवी पर अत्याचार हो रहे हें। यह चिंता का विषय है। एक तरफ़ नवरात्रि के पर्व पर कन्याओं को देवी स्वरूप मानकर पूजा जाता है, वहीं दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप आज भी समाज में हो ही रहे हैं।
मेरा मानना है कि भारतीय संस्कृति को जीवंत रखने व समाज से यह कुप्रथा हटाने, नई पीढ़ी को संस्कार देने के लिए देवियों की मूर्तियाँ, रेखाचित्र, भित्तिचित्र व लघुचित्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत में हर कार्य की शुरुआत देवी सरस्वती की वंदना से की जाती है। देवी को सर्वशक्तिमान माना जाता है। देवी की शक्ति के आगे तो समस्त देवता भी नतमस्तक हैं। भगवान शिव-विष्णु-ब्रह्म भी देवी को सर्वशक्तिमान मानते हैं। भारतीय लघुचित्रों में देवियों का सर्वाधिक अंकन जैन शैली, राजस्थानी शैली, पहाड़ी शैली, मध्य भारत की शैली व दक्षिण भारत की शैली मैं हुआ है।
राजस्थानी शैली में मेवाड़, कोटा, बूंदी, किशनगढ़, बीकानेर, सिरोही, जोधपुर व जयपुर में लघुचित्र बने। देवी राधा के लघुचित्र उतर भारत में सबसे अधिक बने। पहाड़ी शैली में बसोहिली, चम्बा, मण्डी, कुल्लू, गुलेर, काँगड़ा आदि प्रमुख शैलियाँ हैं। देवी राधा, सीता, पार्वती, काली, भद्रकाली, दुर्गा आदि अनेक रूपों का अंकन इस शैली में हुआ है। पहाड़ी शैली के लघुचित्रों में देवियों की शक्ति का परिचय मिलता है कि किस प्रकार असुरों का वध करके इस संसार को विनाश से बचाया है। राजस्थान के लघुचित्रों में प्रेम, भावुकता, सुंदरता के भाव देखने को मिलते हैं। देवी माहात्म्य, दुर्गासप्तशती, गीत-गोविंद, रसिक प्रिया आदि काव्य ग्रंथ देवियों पर आधारित हैं। भारतीय लघुचित्रों में माँ का अंकन चित्रकारों ने किया है!
देवियों के विभिन्न रूपों को मैंने अपने शोध-ग्रंथ में उजागर करने का सार्थक प्रयास किया है। आशा है कला जगत में यह शोध-ग्रंथ एक नवीन अध्याय जोड़ने में सक्षम होगा व इससे प्रेरणा लेकर समाज में नारी रूपी देवी पर आत्याचार बंद होगा।
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