अशोक काकरान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
लगातार बढ़ती बेरोजगारी दूर करने का कोई प्रयास करने में कोई भी सरकार गम्भीर नही दिखाई देती। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि देश मे बेरोजगार युवकों की फ़ौज खड़ी हो रही है। सरकार की किसी भी योजना का लाभ युवाओं तक नही पहुंच रहा। लॉक डाउन के कारण भी बहुत लोगो को बेरोजगार होना पड़ा है। भारत मे काले धन पर रोक लगाने के लिए मोदी सरकार ने नोटबन्दी ओर जीएसटी जैसे फ़ैसले लिए थे, जिनका लाभ इसलिए नही दिखा क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था को झटका लगा। उससे शहर का मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग काफी प्रभावित हुआ। देश के विभिन्न भागों में उन व्यापारियों का व्यापार ठप हो गया या सिर्फ 10 से 20 प्रतिशत रह गया, जो सारा लेन देन नकद में करते थे, इतनी बड़ी संख्या में इन व्यापारियों, आम जनता में खरीद बेच करने वाले लोगों का काम ठप हो गया यानी लाखो लोगो का रोजगार अचानक ठप हो गया। इसी तरह रियल इस्टेट में लगे काले धन के कारण जो आग लगी थी वह ठंडी हो गई। सम्पतियों के दाम गिरे, किंतु बाजार में खरीददार गायब हो गए। नतीजे के रूप में पूरे देश में भवन निर्माण उधोग ठंडा पड़ गया। जिसमे कार्यरत मजदूर, राज मिस्त्री, सुपरवाइजर,प्लम्बर, बढ़ई, आर्किटेक्ट, इंजीनियर भवन सीमेंट सामग्री विक्रेता आदि बेरोजगार हो गए। सम्पति में भारी मंदी आने से कस्बो, शहरों में लगे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए। इन पर आश्रित परिवार दयनीय हालत में हो गए। बेरोजगारी से पीड़ित व्यक्ति, उधमी युवक आत्महत्या कर रहे हैं। सत्ताधारी लोगो का सरंक्षण प्राप्त विजय माल्या जैसे अपराधी करोड़ों अरबो रुपये बैंको से लूटकर विदेशों में मजा कर रहे हैं। इससे बैंको से आम जनता को लोन, भुगतान मिलने में दिक्कतें आने लगी। शिक्षित बेरोजगार अपराधो में भी लिप्त हो रहे हैं। यह बात डीसीआरबी की रिपोर्ट में कही गई है। अगर देश मे इसी तरह बेरोजगारी बढ़ती रही तो अराजकता बढने की आशंका से इंकार नही किया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि बेरोजगारी की समस्या का जिक्र भी सुनना पसंद नहीं करती। सत्तासीन पार्टी को जब युवाओं के वोट की जरूरत होती है तो बेरोजगारी दूर करने बात की जाती है, करोड़ो रोजगार देने की बात की जाती है। देश मे शिक्षित बेरोजगारों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। स्थिति यह है कि लगभग हर घर मे बेरोजगार युवक बैठे हैं। गांव और शहर के बीच पढ़ाई का फर्क होता है, शहर का बेरोजगार युवक ज्यादा बेचैन है। चुनावों के दौरान बेरोजगारी दूर करने की बहुत लंबी चौड़ी बातें की जाती हैं। सत्ता हासिल होते ही बेरोजगारी कोई मुद्दा नहीं रह जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार, राजपुर कलां (जानसठ) मुजफ्फरनगर
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