शि.वा.ब्यूरो, शामली। परिवार नियोजन के नोडल अधिकारी डॉ. तपन कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग का जोर रहता है कि संस्थागत प्रसव के मुकाबले कम से कम 20 फीसद महिलाओं को जागरूक कर पीपी आईयूसीडी के लिए तैयार किया जाए । उनको परिवार कल्याण के बारे में जागरूक करने में आशा कार्यकर्ता और एएनएम की प्रमुख भूमिका रहती है। इस वित्तीय वर्ष 2020-21 की शुरुआत ही कोरोना के चलते लॉक डाउन से हुई, फिर भी प्रदेश के कुछ जिलों की महिलाओं ने संस्थागत प्रसव के तुरंत बाद इस विधि को अपनाने में खास दिलचस्पी दिखाई। उन्होंने बताया हेल्थ मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) के 12 जून तक के आंकड़ों के मुताबिक जिले में गत अप्रैल से 12 जून तक यानि करीब ढाई माह में 3036 महिलाओं ने संस्थागत प्रसव (सरकारी व निजी अस्पताल मिलाकर) कराया, जिसमें से 488 ने पीपीआईयूसीडी को अपनाया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन- उत्तर प्रदेश की महाप्रबंधक-परिवार नियोजन डॉ. अल्पना का कहना है कि लोगों को लगातार जागरूक करने का प्रयास रहता है कि “छोटा परिवार-सुखी परिवार” के नारे को अपने जीवन में उतारने में ही सभी की भलाई है। इसके लिए उनके सामने “बास्केट ऑफ़ च्वाइस” मौजूद है, उनके फायदे के बारे में भी सभी को अच्छी तरह से अवगत करा दिया गया है। प्रदेश के जिन जिलों ने इस दिशा में अच्छा प्रदर्शन किया है, उनसे सीख लेते हुए अन्य जिलों को भी इस दिशा में बेहतर परिणाम देना चाहिए । मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिहाज से दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर अवश्य रखना चाहिए। उससे पहले दूसरे गर्भ को धारण करने योग्य महिला का शरीर नहीं बन पाता और पहले बच्चे के उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह बहुत जरूरी होता है । इसके लिए लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन तक उचित गर्भ निरोधक सामग्री पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को भी दक्ष करने का प्रयास किया जाता है । उनका कहना है कि परिवार नियोजन में स्वास्थ्य विभाग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर प्रदेश के सभी जिलों में उत्तर प्रदेश तकनीकी सहयोग इकाई (यूपी टीएसयू) मदद कर रही है, जिसका प्रयास सराहनीय है ।
बता दें कि परिवार नियोजन स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकताओं में शामिल है, जिसके लिए समय-समय पर तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों को लाभार्थियों तक पहुंचाने की हरसंभव कोशिश रहती है, इसमें भी दो बच्चों के बीच अंतर रखने के लिए कई तरह के अस्थायी गर्भ निरोधक साधन लाभार्थियों की पसंद के मुताबिक उपलब्ध हैं। इसमें एक प्रमुख साधन है पोस्ट पार्टम इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपी आईयूसीडी) जो कि प्रसव के 48 घंटे के अन्दर लगता है और जब दूसरे बच्चे का विचार बने तो महिलाएं इसको आसानी से निकलवा भी सकती हैं। अनचाहे गर्भ से लम्बे समय तक मुक्ति चाहने वाली महिलाओं के बीच इस कोरोना काल (कोविड-19) में भी कई जिलों में सबसे अधिक इसको पसंद किया गया।
आईयूसीडी गर्भाशय के भीतर लगने वाला छोटा उपकरण है, जो कि दो प्रकार का होता है- पहला कॉपर आईयूसीडी 380 ए-, जिसका असर दस वर्षों तक रहता है। दूसरा है- कॉपर आईयूसीडी 375, जिसका असर पांच वर्षों तक रहता है। प्रसव के 48 घंटे के अन्दर यानि अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले महिला आईयूसीडी लगवा सकती है। एक बार लगने के बाद इसका असर पांच से दस साल तक रहता है । बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने की यह लम्बी अवधि की विधि बहुत ही सुरक्षित और आसान भी है।