कल्पना गांगटा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कोरोना, कोरोना विश्व व्यापि कोरोना
कब तक जाओगे कहो न
हरी भरी धरा की शुद्ध वायु को मलिन कर
डराते फिर रहे सबको क्यों, बताओ न
कहीं कोई तड़प रहा, कहीं कोई जिंदगी के लिए लड़ रहा
निश्चित है नाश तेरा इस पावन धरा पर फिर भी तू फैल रहा
कोरोना, कोरोना अब हमने भी है ठाना
हमको है जीतना अब नहीं है तुमसे घबराना
आए जिस राह से तुम, वहीं से है तुम्हें लौटना
ऋषि मुनियों की भूमि पर कहाँ तुम टिक पाओगे
माना बढ़ती ही जा रही है शक्ति तुम्हारी
पर इसे हराना है जिम्मेदारी हमारी
हमको अपना जीवन आप बचाना है
मानवता का फर्ज निभाना है
समय नहीं यह दुबकने या घबराने का
साबुन, सेनटाइजर ही काफी नुस्खा तुम्हें भगाने का
कोरोना कोरोना, आंखे अपनी खोलो जरा देखो न
तुम्हारा सफाया करने, खाकी, श्वेत वस्त्र धारी
वदूत दुनिया में अवतरित हुए पहचानों न
कोरोना कोरोना, जिधर से आए चुपके से उधर चले जाओ न
हमें ही है अस्तित्व तुम्हारा मिटाना, मान जाओ न
ढल्ली (शिमला) हिमाचल प्रदेश