कुलदीप तोमर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कोविड.19 के द्रष्टिगत लाकडाउन के बहाने शिक्षा माफियाओं, स्कूल प्रबंधको, पब्लिेशन्स हाउस बुक सेल्स की लाबी ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए ऑनलाइन स्कूली शिक्षा की शुरूआत की है। वास्तव मे स्कूल संचालको का छिपा उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षा के बहाने फीस वसूलना तथा पुस्तक व स्टेशनरी विक्रेताओं से कमीशन वसूलना है। लाॅकडाउन जैसी आपात स्थिति से निपटने के लिए जहां सरकार सहित अनेक दानशील लोगों व संस्थाओं ने अपने खजाने का मुंह खोल दिया है, लेकिन वहीं दूसरी ओर कुछ शिक्षा माफिया ऐसी आपात स्थिति में भी लाभ कमाने से बाज नहीं आ रहे हैं। भारत के परम्परागत शिक्षा तंत्र में अभिभावकों व छोटे-छोटे नन्हें-मुन्ने बच्चों पर लादी जा रही यह आनलाइन शिक्षा प्रणाली कारगर होगी, इसमें संदेह है। अपितु इसके विपरीत इसके दुष्परिणाम हमारे समाज व देश को भुगतने पड़ सकते हैं। सोशल मीडिया पर तैरती सूचनाओं के समुद्र से बचना और लिखित व प्रकाशित सूचना पर भरोसा रखना कहीं अधिक कारगर सिद्ध होगा। हालांकि केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा इस दिशा में काफी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अक्सर कुछ शिक्षा माफियाओं की कुटिल चालों के सामने सरकारी तंत्र नतमस्तक हो जाता है और इसका खामियाजा निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा आधुनिकीकरण का ड्रामा रचकर अधिकतर स्कूल संचालक लोगों को अपने मकड़जाल में फंसाकर उनकी कमाई पर ऐश के साथ-साथ बच्चों का अभिभावक बनने का प्रयास कर रहे हैं।
जानकारों की मानें तो सूचना तकनीक के बाजारीकरण से स्कूली बच्चे घर मे रहते हुए भी ऑनलाइन शिक्षा के मकड़जाल में अपने वास्तविक अभिभावकों से दूर होते चले जाएंगें। यह भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिए ठीक संकेत नहीं हैं। इसके प्रभावी होने से स्रजनात्मक माहौल नहीं बन पाएगा तथा समावेशी शिक्षा को धक्का लगेगा। शिक्षा सम्पन्न व विपन्न वर्गों के बीच बंट कर रह जायेगी, क्योंकि आज भी अनेक लोगों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए स्मार्टफोन नहीं हैं। ऑनलाइन शिक्षा कहीं न कहीं राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा की रूपरेखा 2005 का उल्लंघन भी करती है। कोविड.19 के दृष्टिगत लाॅकडाउन के दौरान भी बच्चे अपनी पढ़ाई अभिभावकों के संरक्षण में परम्परागत सामग्री की मदद से कहीं अधिक बेहतर तरीके से कर सकते हैं। राष्ट्रीय आपदा के कारण विषम परिस्थितियों मे अंतिम पायदान पर खड़े अभिभावकों व उनके बच्चो पर ऑनलाइन शिक्षा का आर्थिक व मानसिक दबाव डालना न्याय संगत नहीं है। बच्चे अपनी पुरानी कक्षा की पाठ्य सामग्री को दोहराकर अपनी नीव को और अधिक मजबूत कर सकते हैं। ऐसा करने से परिवार पर अनावश्यक आर्थिक बोझ भी नहीं पडेगा और अतिरिक्त श्रम की भी बचत होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए आगे आकर बच्चों सहित स्कूल संचालकों से भी अपील करनी होगी कि वे पुरानी पुस्तकों से ही पढ़ाई जारी रखें। प्रधानमंत्री की इस अपील का लाभ थाली बजाने, ताली बजाने व दीपक जलाने की अपील से भी अधिक बेहतर परिणाम आ सकते हैं। बता दें कि प्रत्येक वर्ष की भांति नई कक्षा की पुस्तकें ग्रीम कालीन अवकाश के बाद नया सत्र मई-जून में आरम्भ होने के बाद भी खरीदी जा सकती हैं।
कोरोना संक्रमण का खतरा इतना अधिक है, कि इसकी विकरालता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। ऐसे माहौल में आमदनी बंद होने व खर्च बढ़ने के कारण स्मार्टफोन इंटरनेट व नई पाठ्यसामग्री की व्यवस्था करना अत्यंत कठिन है। ऑनलाइन शिक्षा की दुहाई देकर सरकारी शिक्षकों को भी गुलाम बनाया जा रहा है। इसके साथ ही इस बहाने नीजि स्कूल शुल्क वसूलने तथा पब्लिकेशन हाउस अपनी पहले से ही मुद्रित करायी हुई पाठ्यपुस्तकों को बहुत जल्दी बेचने की फिराक में लगे हुए हैं। ताजा हालात में शिक्षा माफिया पापा की मजबूरी है, शिक्षा बहुत जरुरी है की भावना का लाभ उठा रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता, शिवपुरी (खतौली) मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश