(राज शर्मा आनी), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
माना जाता है की शमशरी महादेव शिव लिंग (विग्रह ) का प्राकटय दो छोटी छोटी नदियों व बूढ़ी नागिन जल स्त्रोत की संगम स्थली त्रिवेणी घाट पर सघन झाडियो के समीप भूमि से हुआ है । कमांद गांव में एक ग्वाला जमींदारों के पशुओं को चराने ले जाता था । मध्य दिन के समय जब कभी ग्वाले की आंख लग जाती थी तो कृष्ण वर्ण की एक गाय शीघ्रता से उस जंगल से भागते हुए त्रिवेणी घाट पर झाडियों के अन्दर सुत भर दिख रहे एक पषाण पर स्वतः ही दुध की धारा निकल जाया करती थी और वापिस झुंड मे आ जाती थी । कुछ दिनो के पश्चात पशुओ के जमींदार को एक गाय का दुध न देना कुछ समझ नही आया तो ग्वाले से इस विषय मे चर्चा की गई । ग्वाला भी क्या बताता उसे इस विषय मे कुछ मालूम नही था । अगले दिन उसने उसी गाय पर दृष्टि रखी जो घर आकर दुध नही देती थी । दोपहर के समय उसने देखा की वह काली गाय बड़े वेग से उछल कूद करते हुए घाट की तरफ दौडे जा रही हैं तो उसने भी गाय का पिछा किया उसने देखा की वह गाय एक त्रिवेणी मे सघन झाडियों के बिच एक एक शिला पर दुध गिरा रही है । स्तब्ध ग्वाला स्वयं इस घटना को देखकर घबरा गया और शीघ्रता से जमींदार के पास सारा घटनाक्रम बताने लगा । अगले दिन जमींदार भी इस घटना को देखना चाहता था उसने जब वही सारा घटनाक्रम अपनी आंखो से देखा तो एकाएक हैरान रह गया । उसी रात स्वप्न मे देव दर्शन हुए और आदेश दिया की इस स्थान की खुदाई करे । दुसरे दिन खुदाई से शिव लिंग विग्रह के साथ साथ 5 अन्य मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई थी जिसे आज भी शमशरी महादेव के मन्दिर में देखा जा सकता है ।
हिमाचल के आंचल मे न जाने कितनी अध्यात्मिक दिव्य विभूतियों ने इस धरा पर अपने कदम रखे। प्रजा जनो के कष्टो के निवारण हेतू भगवान उस क्षेत्र विशेष मे उनके इष्ट के रुप मे अवतरित हुए तथा उस काल से लेकर आज तक अपनी छत्रछाया मे सबको लिये हुए प्रत्येक इष्ट,कुलज ,आराध्य । मूल स्थान के अतिरिक्त प्रत्येक घरो मे पूजे जाते हैं। ऐसे ही अपनी महिमा से चार गढो को सुशोभित किये हुए आनी क्षेत्र के आराध्य देव शमश्री महादेव जो अपनी शक्ती से क्षेत्र के जन जन के दिलो मे आस्था बनाए हुए हैं। पैगौडा संयोजन शैली मे निर्मित महादेव का मन्दिर बहुत प्राचीन है। मन्दिर मे शिव पार्वती, स्वयम्भू शिव लिंग विराजमान है। मन्दिर की प्राचीनता का प्रमाण प्राचीन काल की अति गुप्त भाषा टाँकरी भाषा के अभिलेख से पता चलता है, जिसमे विक्रम संवत 57 मे बने मन्दिर का प्रमाण मिलता है जो अभी वर्तमान विक्रम संवत 2076 मे 2019 वर्ष पूर्व बनाया गया था।
यह मन्दिर आनी से उत्तर की ओर NH 305 आनी कुल्लू उच्च राजमार्ग के अन्तर्गत 3 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। समुद्र तल से 2145 फीट की उंचाई मे बसे है भूत भावन महादेव शंभू। क्षेत्रीय अधिपत्य के चलते एक समय राजा रघुवीर सिंह के राज्यकाल मे वर्षा के संकट को लेकर नंगे पांव आए थे भूमि शमशर मे। महादेव ने बहुत प्रचण्ड वर्षा की थी उस समय।भगवान परशुराम द्वारा स्थापित गर्भगृह का शिव पार्वती विग्रह
शमशर ग्रामाख्ये विविध जल सुपर्णे मनभावयते।
त्रिमूर्ति शंभो: मनोहर: वसतौ दिव्य भुवि ।
जहां तक रथ मे लगने वाले मुखौटे की बात है अधिकतर लोग जनश्रुति के चलते भिन्न भिन्न नाम देते हैं ।वास्तव मे यह भगवान परशुराम जी का दिव्य विग्रह है । जो की कल्कि पुराण मे कल्कि कृत भार्गव कवच मे श्री भगवान कल्कि ने अपने गुरुवर परशुराम जी को त्रिमूर्ति कह कर सम्बोधित किया है। शिव पार्वती और शिव लिंग व नित्य पार्षद के दिव्य विग्रह जो पाषण निर्मित है ये सब गर्भ गृह मे स्थापित हैं ।
कुल्लू, हिमाचल प्रदेश