(सलिल सरोज), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
सच में रिश्ते तुम्हारे- मेरे कुछ गहरे थे
या बुलबुलों की तरह पानी पर ठहरे थे
शोर तो बहुत किया था मेरी हसरतों ने
लेकिन शायद तुम्हारे अहसास बहरे थे
कितनी कोशिश की मैं छाँव बन जाऊँ
ख्वाहिशें तुम्हारे चिलचिलाते दोपहरें थे
कब देखी तुमने हमारे प्यार का सूरज
निगाहों पर तुम्हारे धुन्ध और कोहरे थे
लगता तो था कि हम एक हँसी हँसते हैं
अब मालूम हुआ कितने अलग चेहरे थे
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन, नई दिल्ली
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