काज़िब

डाँ. राजीव डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 

कितने मंत्रमुग्ध हो
औरों के लिए
अपने लिए थोड़ा होते तो
क्या बात थीं।

कितने मंत्रमुग्ध हो
झूठ अहम के लिए
किसी पर रहम के लिए होता तो
क्या बात थीं।

कितने मंत्रमुग्ध हो
मतलबी हंसी के लिए
मासूम मुस्कराहट के लिए होता तो
क्या बात थीं।

कितने मंत्रमुग्ध हो
दूसरों को नीचा दिखाने के लिए
खुद के व्यक्तित्व को
ऊंचा उठाने के लिए होते तो
क्या बात थी।

युवा कवि व लेखक गांव जनयानकड़ (कांगड़ा) हिमाचल

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