कुदरत का कहर

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
क्या गांव नगर
क्या नदी नहर
कब ढा जाए
कुदरत का कहर
रोने सोने खोने
की गुंजाइश नहीं 
सदमे मे रहते
आठों प्रहर
धराली मे ं
सिर्फ 38 सैंकिड
डुबा बाजार शहर
रोने बचाने का
ना मिला समय
बह गए सारे घर 
आग जल भूकंप
ऐसे ढाते कहर
अस्थिर से स्थिर
का नहीं अवसर
सिर्फ एक ही
निवेदन हे ईश्वर
बुलाना है आयेंगे 
ठीक से जायें मर
अकाल मृत्यु से
डरता है नर
अब तो भगवन
बस कर बंद कर
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम

Post a Comment

Previous Post Next Post