शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (488) गतांक से आगे......

मेना और हिमालय की बातचीत, पार्वती तथा हिमवान् के स्वप्न तथा भगवान् शिव से मंगल ग्रह की उत्पत्ति का प्रसंग
दिव्य द्युति से दीप्तिमान् वह शोभाशाली बालक अत्यन्त दुस्सह तेज से सम्पन्न था, तथापि उस समय लोकाचार परायण परमेश्वर शिव के आगे वह साधारण शिशु की भांति रोने लगा। यह देख पृथ्वी भगवान् शंकर से भय मान उत्तम बुद्धि से विचार करने के पश्चात सुन्दरी स्त्री का रूप धारण करके वहीं प्रकट हो गयीं। उन्होंने उस सुन्दर बालक को तुरंत उठाकर अपनी गोद में रख लिया और अपने ऊपर प्रकट होने वाले दूध को ही स्तन्य के रूप में उसे पिलाने लगीं। उन्होंने स्नेह से उसका मुंह चूमा और अपना ही बालक मान हंस-हंसकर उसे खेलाने लगीं। परमेश्वर शिव का हित साधन करने वाली पृथ्वी देवी सच्चे भाव से स्वयं उसकी माता बन गयीं।

संसार की सृष्टि करने वाले परम कौतुकी एवं विद्वान् अन्तर्यामी शम्भु वह चरित्र देखकर हंस पड़े और पृथ्वी को पहचानकर उनसे बोले-धरणि! तुम धन्य हो! मेरे इस पुत्र का प्रेमपूर्वक पालन करो। यह श्रेष्ठ शिशु मुझ महातेजस्वी शम्भु के श्रमजल (पसीने) से तुम्हारे ऊपर उत्पन्न हुआ है। वसुधे! यह प्रियकारी बालक यद्यपि मेरे श्रमजल से प्रकट हुआ है, तथापि तुम्हारे नाम से तुम्हारे ही पुत्र के रूप में इसकी ख्याति होगी। यह सदा त्रिविध तापों से रहित होगा। अत्यन्त गुणवान और भूमि देने वाला होगा। यह मुझे भी सुख प्रदान करेगा। तुम इसे अपनी रूचि के अनुसार ग्रहण करो। ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! ऐसा कहकर भगवान् शिव चुप हो गये।      (शेष आगामी अंक में)

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