शिवपुराण से (रूद्र संहिता तृतीय पार्वती खण्ड) (479) गतांक से आगे......

पार्वती का नामकरण और विद्याध्ययन, नारद का हिमवान् के यहां  जाना, पार्वती का हाथ देखकर भावी फल बताना, चिन्तित हुए हिमवान् को पार्वती का विवाह शिवजी के साथ करने को कहना और उनके संदेह का निवारण करना

केवल एक रेखा विलक्षण है, उसका यथार्थ फल सुनो। इसे ऐसा पति प्राप्त होगा, जो योगी, नंग-धडंग रहने वाला, निर्गुण और निष्काम होगा। उसके न मां होगी न बाप। उसे मान-सम्मान का भी कोई ख्याल नहीं रहेगा और वह सदा अमंगल वेष धारण करेगा।

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! तुम्हारी इस बात को सुन और सत्य मानकर मेना तथा हिमाचल दोनों पति-पत्नी बहुत दुखित हुए, परंतु जगदम्बा शिवा तुम्हारे ऐसे वचन को सुनकर और लक्षणों द्वारा उस भावी पति को शिव मानकर मन-ही-मन हर्ष से खिल उठीं। नारदजी की बात कभी झूठ नहीं हो सकती, यह सोचकर शिवा भगवान् शिव के युगलचरणों में सम्पूर्ण हृदय से अत्यन्त स्नेह करने लगीं। नारद! उस समय मन-ही-मन दुखी हो हिमवान् ने तुमसे कहा-मुने! उस रेखा को उससे बचाने के लिए क्या उपाय करूं?

मुने! तुम महान् कौतुक करने वाले और वार्तालाप विशारद हो। हिमवान् की बात सुनकर अपने मंगलकारी वचनों द्वारा उनका हर्ष बढ़ाते हुए तुमने इस प्रकार कहा।

नारद बोले- गिरिराज! तुम स्नेहपूर्वक सुनो, मेरी बात सच्ची है। वह झूठ नहीं होगी। हाथ की रेखा ब्रह्माजी की लिपि है। निश्चय ही वह मिथ्या नहीं हो सकती। अतः शैलप्रवर! इस कन्या को वैसा ही पति मिलेगा।(शेष आगामी अंक में)

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