वनमाली चालीसा
डॉ. दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
जगन्नाथ को नमन करूं, वनमाली कहलाय।।
शिक्षा साहित्य दान करि, मानव राह दिखाय।।
हे शिक्षाविद् हे वनमाली।
जन कल्याणी प्रतिभाशाली।।1
नगर आगरा यमुना तीरा।
धन्य भूमि जहं उपजा हीरा।।2
इक अगस्त सन बारह आया।
भानुमती सुंदर सुत जाया।।3
शारद सुत हिन्दी रखवाली।
जगन्नाथ चौबे वनमाली।।4
सादा भोजन सादा बाना।
उच्च सोच को सबने जाना।।5
गद्य पद्य के सिरजन हारी।
नीति करुणा धरम विचारी।।6
मानस मेहनत नव आचारा।
शिष्यों के मन जानन हारा।।7
शिक्षण विधियां बहुत बनाई।
नवाचार  से पाठ पढ़ाई।।8
शिक्षक बन के बाल पढ़ाये।
फिर संचालक बनकर आये।।9
बीस बरस शाला में छाये।
कालेजों में धाक जमाये।।10
ब्लास खंडवा अरु भोपाला।
शिक्षा दीनी पुस्तक शाला।।11
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधाना।
बने सदस्य किया सम्माना।।12
पांच सितंबर बासठ साजा।
राष्ट्रपति ने तुम्हें नवाजा।।13
शिक्षण साहित सेवाकारी।
पाइ उपाधि जन उपकारी।।14
देश धर्म के काज भी करते।
अत्याचारों से नित लड़ते।।15
विश्वमित्र कलकत्ता वाली।
मासिक पाती जगत निराली।।16
प्रथम कथा सन चौंतिस आई।
जिल्दसाज बन जग में छाई।।17
लोक माधुरी भारति माया।
सरस्वती में खूब छपाया।।18
साहित्य पत्र पत्रिका देखे।
व्यंग कथा भी तुमने लेखे।।19
अनुभूति अरू नाटकवाली।
सूक्ष्म समझ विश्लेषणशाली।।20
और आदमी कुत्ता प्यारे।
संग कहानी नंद दुलारे।।21
पाठक आलोचक भी भाये।
सौ से ज्यादा लेख रचाये।।22
हे गुरुवर हे साहितकारी।
मानवता के रहे पुजारी।।23
बाइस सित उन्निस सौ पचपन।
नगर खंडवा लाया बचपन।।24
सुत संतोषा तुमने जाया।
मां शारद का आशिष पाया।।25
पितु के मारग बेटा आया।
शिक्षा साहित्य खूब रचाया।।26
सृजन पीठ वनमाली लाया।
पुस्तक घर अभियान चलाया।27
शिक्षा संस्कृति जन विज्ञाना।
नव पीढ़ी को दे वरदाना।।28
रंग कर्म पुस्तक परकाशा ।
व्यंग कथा तकनिक विश्वासा।।29
कौशल केन्द्र बहुत बनाये।
युवा जनों को राह दिखाये।।30
रविन्द्रनाथ शिक्षालय सुंदर ।
देशी  परदेशी  का मंदर।।31
हल्के रंग कमीज़ कहानी।
धरती कोना कविता जानी।।32
छै पुस्तक कंप्यूटर लेखी।
कला की संगत तुमने देखी।।33
बहु पुस्तक का करते लेखन।
इलेक्ट्रॉनिक का संपादन।।34
नौ बिन्दु का खेल रचाये।
बीच प्रेम में गांधी आये।।35
वनमाली समग्र लिखवाया।
पितु का लेखन शोध कराया।।36
कविता अनु आलोच कहानी।
उपन्यास लेखक विज्ञानी।।37
शेक्सपियर की यादें करते।
रामकुमारा जीवन भरते।।38
धन्यवाद चौबे परिवारा।
सदा बहे साहित्य की धारा।।39
अप्रैल तीस छियोत्तर आया।
जिल्दसाज प्रभु के मन भाया।।40
गद्य गीत अभिसारिका, जनता की सरकार।
गागर में सागर भरा,धन धन साहितकार।।
इक सौ दसवें जनम पर, करते तुम्हें प्रणाम।
हमें सीख सिखा गये, नवाचार सद्काम।।
संयोजक, वनमाली सृजन पीठ आगर मालवा
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