सखा सुदामा चालीसा
डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भक्त सुदामा प्रीत को, जाने सब संसार।
सखा भाव से कीजिए, होवें भव से पार।।
मित्रों की जब होती बातें।
कृष्ण सुदामा नही भुलाते।।1
जात पांत ना दीन अदीना।
खेलत संगे प्रेम अधीना।।2
बाल पने में करी पढ़ाई।
सांदीपन के आश्रम जाई।।3
बालक से फिर बन तरुणाई।
छोड़ खेल गृहस्थी सिर आई।।4
नाम सुशीला भोली भाली।
आज्ञाकारी थी घर वाली।।5
रुखी सूखी रोटी खाती ।
गीत भजन में समय बिताती।।6
फिर घर में बच्चे भी आये।
भक्त सुदामा मांगत खाये।।7
जो भी मिलता करे गुजारा।
घर का मिटता नही दुखारा।।8
एक दिना पति से बतराई।
भूखे बच्चे दिल भर आई।।9
मैं नहि मांगू  दाख मिठाई।
पेट भरण का करो उपाई।।10
बाल सखा हैं कृष्ण मुरारी।
जो दीनन के पीड़ा हारी ।।11
तुम भी जाओ करो याचना।
मागों भिक्षा दरद बांटना।।12
सच्चा सच्चा हाल सुनाओ।
घर के दुखड़ा सभी बताओ।।13
भगत सुदामा को समझाया।
पत्नी का दुख हृदय समाया।।14
भेंट देन की करी तयारी।
तांदुल दौड़ लाइ घरवारी।।15
बांध पोटली कांख दबाई।
मांगत खात चले गुरु भाई।।16
पुरी द्वारिका पंथ निहारा।
दीन हीन जाने संसारा।।17
पैदल चलते गरमी पाई।
थककर बैठे तृषा सताई।।18
देख नगर का भेद न पाया।
फिर पांडे मनमें बतराया।।19
बाल पने की यादें आई।
गुरु माता के चने चबाई।।20
मांगत मोहे आवत लाजा।
सखा कारणे नाही काजा।21
मित्र कपट से बड़ दुख पाया।
प्रभु तेरी  कैसी  है  माया।।22
फिर आगे को कीन पयाना।
राजभवन सुंदर दिख आना।।23
देख छड़ी पांडे घबराया।
तब रक्षक ने कह समझाया।।24
पूछा हाल हि पता ठिकाना।
किस कारण से कैसा आना।।25
द्वारपाल फिर दौड़ा आया।
समाचार सब कृष्ण सुनाया।।26
लंबी धोती फटी पुरानी।
कांध जनेऊ करुण कहानी।।27
तले बिवाईं कांटे पैरा।
दूर गांव में करे बसेरा।।28
कोमल तन है मन मुरझाये।
महराजा को सखा बताये।।29
सखा सुनत ही उठे कन्हाई।
फेंक बांसुरी दौड़े आई।।30
मीत सुदामा गले लगाया।
चरण धोय चरणामृत पाया।।31
सिंघासन पर लाय बिठाया।
नूतन वसन तुरत पहनाये।।32
खींच पोटली चावल खाये।
जीवन भर के कष्ट मिटाये।।33
हाथ जोड़ते कृष्ण कन्हाई।
प्रीत मीत की करी विदाई।।34
कृपा श्याम की कोउ न जाना।
भगत सुदामा मन पछताना।35
हे प्रभु तेरी केसी लीला ।
कोई दुखिया कोउ रंगीला।।36
पंडित वापिस घर को आये।
महल देख कर धोखा खाये।।37
टूटी कुटिया बनी अटारी।
सजी सुशीला गहने भारी।।38
भांति भांति पकवान बनाये।
मुरलीधर को भोग लगाये।।39
मसान कवि ने काव्य बनाया।
यह चालीसा हमने गाया।।40
जैसी जाकी भावना, वैसा देते श्याम।
मीरा गज अरु द्रोपदी, लाज रखी भगवान।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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