पन्नाधाय चालीसा: वीरता का करुण गायन

हंसराज नागर, शिक्षावाहिनी समाचार पत्र।
वैसे तो राजस्थान की धरती वीरता ,शौर्य,देश प्रेम, त्याग ,बलिदान ,दानी और स्वामी भक्ति के लिऐ प्रसिद्व है । इसी कड़ी में एक गूजर वीरांगना बेटी पन्नाधाय एक ऐसा नाम जिसके त्याग ने सारी नारी जाति  का सिर सम्मान और गर्व से ऊंचा कर दिया है । सही अर्थो मे पन्ना ने दुनिया को धाय मां का अर्थ समझाया है । पन्ना मेवाड के राणा सांगा की रानी कर्णावती की सेविका थी ।लेकिन जब रानी के बच्चे पैदा हुये तो उनकी धाय बनी। इस वीर गाथा को डॉ दशरथ मसानिया ने चालीसा पाठ के रूप में लिखकर एक ऐतिहासिक नवाचार दिया है।
 भारतीय संस्कृति मे धाय को मां का दर्जा दिया जाता है । इसीलिए धाय को धाय मां कहा जाता है ।यदपि पन्ना का अपना एक पुत्र था,जिसका नाम चंदन था । जब परीक्षा का समय आया तो एक मां ने मां होने से पहले अपने आपको धाय मां माना । 
इतिहास में ऐसे उदाहरण नहीं मिलते जहां एक मां ने राजा के पुत्र को बचाने के लिऐ अपने पुत्र को अपनी आंखो के सामने तलवार के आगे सुला दिया ।ऐसा कराना कितना हद्रयविदारक रहा होगा । इसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते है । पुत्र कुपुत्र भवति पर माता कुमाता न भवति लेकिन यहां तो चन्दन को उसी की मां ने ही मरवा डाला । बनवीर उदयसिंह के प्राण लेना चाहता था ।उस समय स्थितियां ऐसी बन गयी थी कि उदयसिंह की जान बचना लगभग असंभव सा था । पन्ना उस समय बडी दुविधा में थी ।जब राजकुंवर व चन्दन में से कोई एक जीवित रह सकता था ।हालांकि पन्ना चाहती तो चंदन को आसानी से बचा सकती थी ।क्योंकि चंदन के प्राणो को कोई खतरा नहीं था ।और यही एक मां का फर्ज था ।लेकिन मां के फर्ज से बडा फर्ज होता है मातृभुमि को बचाने का फर्ज । उस समय कुंवर उदयसिंह मेवाड के उत्तराधिकारी थे । उनको बचाना माने मेवाड को बचाना था ।आज भी हजारो मां अपने बच्चो को देश की रक्षा के लिऐ सीमाओ पर भेजती है ।और बहुत सी‌ बार पुत्र युद्व में शहीद होते है ।पन्ना ने महारानी से किया वादा ,धाय मां का कर्तव्य एवं मेवाड के उत्तराधिकारी की रक्षा महत्वपूर्ण लगी ।
कभी कभी जब कोई धर्म संकट में पडता है तो उसको एक रास्ता चुनना ही पडता है ।यदि पन्ना चंदन को बचाती तो वो एक साधारण मां का कर्तव्य पूरा करती लेकिन उदयसिंह को बचाकर उसने एक नारी के त्याग की पराकाष्ठा और राष्ट्र भक्ति को बचाया । हम सोच सकते है कि कितना विकट क्षण रहा होगा जब एक मां को इतना कठिन फैसला लेना पडा ।एक मां की ममता ने कितना चित्कार किया होगा ।कितना कठिन होता है अपनी आंखो के सामने अपने आंखो के तारे को मौत की नींद सुलवा देना इसलिये पन्ना कोई साधारण स्त्री नहीं थी । उसका त्याग बहुत बडा है‌।उसके त्याग ने धाय मां को इतिहास में अमर कर दिया है ।यदि आज हम राणाप्रताप के शौर्य की गाथा गाते है तो भी इसमे पन्ना का त्याग छुपा  हुआ है । राजस्थान ही नहीं सम्पूर्ण भारत की धरती पन्ना के त्याग की ऋणी है ।
पन्ना इतिहास का अमर पृष्ठ है ।उसके बलिदान को कमतर नहीं आंका जा सकता ।फिर भी देश के इतिहास में उसको वो स्थान नहीं मिला जो मिलना चाहिये ।पन्ना का त्याग नई पीढी के लिये एक सीख है ।देश हमे सब कुछ देता है हम भी तो कुछ देना सीखे अपने लिये सभी जीते है देश के लिए मरना सीखे । इसे डॉ दशरथ मसानिया ने चालीसा के पाठ के रूप में गेय बना दिया है।आशा है यह चालीसा विश्व भर के गायकों का कंठाहार बनेगा।
शिक्षक एवं इतिहासविद् बारां, (हाड़ोती) राजस्थान
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