डॉ. दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पूंजीवाद का नाश हो, मजदूरों का राज।
मानवता जग में रहे,ऐसा हो विश्वास।।
श्रम से बढ़कर कुछ नहिं होता।
बिन मेहनत वह भूखा सोता।।1
श्रम ही से घर पुल सब बनते।
श्रम से जीवन सुखमय करते।।2
श्रमिक साधना कठिन है भाई।
बिन श्रम सारा जग दुखदाई।।3
प्रातः जल्दी मैं उठ जाता।
रामराम कह प्रभु गुण गाता।।4
खेती करता ढोर चराता।
धूपों से भी नहिं घबराता।।5
रूखी सूखी रोटी खाता।
दुख से अपना समय बिताता।।6
मैकेनिक भी मैं बनकर के।
गाड़ी रोज सुधारा करता।।7
पंचर देखूं उसे सुधारूं।
ट्यूब खोलकर जीवन तारूं।।8
चाय नाश्ता जो भी मिलता।
खा पीकर मैं काम चलाता।।9
जान हथेली पर रखकर के।
वाहन भी मैं रोज चलाता।।10
घांस काटता मेहनत करता।
बंधक बन मजदूरी करता।।11
बड़ी खदानों में भी जाकर।
खनिजों का भंडारा भरता।।12
सागर के भीतर जाकर के
मोती रोज निकाला करता।13
पर्वत की छाती को फाड़ूं
धातु रोज निकाला करता।14
नदियों को भी मोड़ मोड़ कर
रोज सिंचाई मैं ही करता।15
नदियों से भी रेत निकालूं।
छान छान कर भरता बालू।।16
कुऐ बावड़ी मैं ही खोदूं
बड़े बांध भी खूब बनाता।।17
बड़े बड़े तालाब रोककर।
नहरें भी मैं रोज बनाता।।18
फसलों की भी पाणत करता।
सांप नेवले से नहिं डरता।।19
अन्न उगाता हलें चलाता।
खेतीहर मजदूर कहाता।।20
होरी धनिया जैसा बनकर
सारा जीवन दाव लगाता।।21
मंडी में भी बोझ उठाता।
खून पसीना सदा बहाता।।22
मंहगाई की बड़ी लड़ाई।
ख़र्चे भी नित बढ़ते भाई।।23
ऊंचे-ऊंचे भवन बनाता।
फिर भी झुग्गी में मर जाता।।24
साड़ी जेवर पत्नी मांगे
झूठे वादे दे भरमाता।।25
शादी ब्याह भी सादा करता।
करूं उधारी मांगे भरता।।26
बच्चों को भी नहीं पढ़ाकर
उनसे भी मैं काम कराता।।27
कार पोंछते मशाल उठाते।
धनिक जनों के काम कराते।।28
गन्दे नालों में भी गिरते।
पन्नी कागज़ बीना करते।।29
पोषित भोजन को भी तरसे।
सिर पे गर्मी पानी बरसे।।30
बच्चों में कमजोरी आई।
वृद्ध पिता को नहीं दवाई।।31
मज़दूरों की पीड़ा भाई।
जीवन भर है पेट लड़ाई।।32
दया भाव मन में रखें, राखें ऊंच विचार।
श्रम का पूरा दाम हो,श्रमिकों का उद्धार।।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश