महाप्रभु वल्लभ चालीसा (जयंती पर विशेष)

डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

श्री वल्लभ सुमिरन करुं,मनुज रूप अवतार।
लीला राधे श्याम की,कीनी जग विस्तार।।
जयजय महप्रभु वल्लभदेवा।
पुष्टि मार्ग को तुम्ही सेवा।।1
इलम्मागारु कोख से आये।
लक्षमन भट्ट पिता कहाये।।2
संवत पंद्रह सौ  पैंतीसा ।
एकादशी को जन्में ईशा।।3
कृष्णा पक्ष मास बैसाखा।
धरम महीना जग की आशा।।4
जिला रायपुर चम्पा ग्रामा।
आये वल्लभ जन कल्याणा।।5
गोपाल कृष्ण कुल के देवा।
मातु पिता सब करते सेवा।।6
गुरु मंगला विल्व पढ़ाया।
अष्टादश का मंत्र बताया।।7
काशी में प्रभु विद्या पाई।
अल्पकाल में करी पढ़ाई।।8
स्वामी नारायण दी शिक्षा।
तिरदंडा संयासी  दिक्षा।।9
ब्रह्मसूत्रअणु भाष्य बनाया।
उत्तर मीमांसा कहलाया।।10
भगवत टीका की कर रचना।
तत्व अर्थ दीपा का लिखना।।11
अग्निदेव अवतारा भाई।
जगत गुरु की पदवी पाई।।12
काशी अंडेल अरु वृन्दावन।
भै चमत्कार सब सुख पावन।।13 
कृष्ण देव ने आप बुलाया।
धरम सभा  संवाद कराया।।14
 कनकाभिषेक जीत दिलाये।
उपाधी महाप्रभु की पाये।।15
सन पंद्रह सौ दस शुभ आया।
सभा सिकंदर चित्र लगाया।।16
सन चौदह सौ बाणों भाई।
प्रभुजी ब्रज में कृष्ण पठाई।।17
पूरण मल को शिष्य बनाया।
दान सेठ से खूब कराया।।18
सिरी नाथ के सेवा धारी।
सन पंद्रह में मंदिर भारी।।19
चौरासी तो शिष्य बनाये।
जो ठाकुर की महिमा गाये।।20
सूर नंद अरु कुंभन दासा।
परमदास भी रहते खासा।।21
सूरदास को मुख्य बनाये।
अष्टछाप जहाज कहाये।।22
समय पाय जब भये सुखाये।
दो पुत्र महाप्रभु ने जाये।।23
गोप नाथ गोलोक सिधारे।।
बिट्ठल नाथा गद्दी धारे।।24
दशम इस्कंद भगवत आये।
एक एक लीला को गाये।।25
ईश्वर जीव जगत की माया।
कृष्ण ब्रह्म को सत्य बताया।।26
पुष्टी शुद्धा द्वेत कहाई।
इकादशी की महिमा गाई।।27
फिर बिट्ठल अभियान चलाया।
प्रेम तत्व विस्तार कराया।।28
आठ श्रेष्ठ कवियन की जोड़ी।
अष्टछाप ब्रज भाषा मोड़ी।।29
राधा कृष्ण की महिमा गाई।
हिन्दी कविता जग में छाई।।30
सात बरस के कृष्ण कन्हैया।
सिरी नाथ ही नाग नथैया।।31
गोकुल में ठकुरानी घाटा।
दर्शन जमना जी के ठाटा।।32
आठो यामा आठो पूजा।
ठाकुर सेवा धरम न दूजा।।33
राग भोग सिंगार सजाई।
सेवा तीनो जानो भाई ।।34
धरम सनातन जग ने जानी।
जाकी महिमा वेदों मानी ।।35
दरशन परसन अरु अस्नाना।
पूजन व्रत भी खूब बखाना।।36
तीरथ झांकी भोग लगाना।
गायन वादन आठो यामा।।37
विष्णु पूज वैष्णव कहावे।
वासूदेव का  ध्यान लगावे ।।38
बावन की तो आयू पाई।
चौरासी सद् ग्रंथ रचाई।।39
महाप्रभू की महिमा गाई।
सार सार में कही सुनाई।।40
वल्लभ से बिट्ठल भये,पीछे गोकुल नाथ।
सिरीनाथ किरपा करी,पुष्टी मारग साथ।।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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