ढीलामस्ती ( मुक्तक)

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

समय रुकता नहीं देर मत कर
जो करना है कर सांझ सबेर मत कर
बीत जायेगी समय की घङिया
ढीलामस्ती में नहीं किसी के बगैर कर

पछताना ना पङे विवेक से तु काम ले
धंधेबाजी छोड़ कर ईश्वर का तु नाम ले
याद करे सारी दुनिया ऐसा तु काम कर
क्षमाशील बन जा ना मन से इंतकाम ले

कितने किए पुण्य कर्म संसार में आया
कर्म है लेनदेन क्या खोया, क्या पाया
खेंच जा लकीर ऐसी पगडंडी बन जाए
करता जा श्रमदान मत देख धुप छाया
 
किया ना अभ्यास  राम नाम कैसे आए
डुबे रहो छाछ में ऐसे कैसे माखन खाये
भोग विलास में क्यों भटक रहे बावरे
सतसंग एक रास्ता जो नैया पार लंघाये

जीवन में उदासी छाई निंद कोसों दूर है
चाकरों को छप्पन भोग तु तो मजबूर है
समेटी संपत्ति का कैसे होगा इस्तेमाल
तङफ रहा बिस्तर में कहने को हजुर है
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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