डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
न परशुराम का फरसा चमका, न तथाकथित बुद्धिजीवियों की जुबान चली, न संविधान को चोट पहुँची, न चौथा खम्भा चरमराया, न न्यायमूर्तियों ने संज्ञान लिया, न लोकतंत्र को ख़तरा हुआ। अगर उक्त नारे में "ब्राह्मण" की जगह दलित, मुस्लिम या ईसाई होते तो.........।
ऐसा कोई भी नारा या सोच गलत है और गलत का सबको मिलकर विरोध करना चाहिए। यह देश हर मोदी या हर राहुल से बड़ा और पुराना है। अंधभक्त या चमचा बनने के चक्कर में एक नागरिक बनना न भूलें।
साहित्यकार व अभियंता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय