रेखार्जुन आचार्य, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मैं यहाँ हूँ इन्तजार में, तुम कहाँ हो?
नज़र तलाश रही है तुम्हें अरसो से,
नीर बहते चला जा रहा है बरसों से,
तुमसे जिस दिन मधुर मिलन हो,
तब हृदय आलिंगन प्रस्फुटित हो मेरा,
तुम साथ ले जाओ,
तब जीवन सार्थक हो मेरा।
कुछ तस्वीरें, धुंधलाती यादें,
और तुम्हारे वचनों का विश्वास
मन मे मजबूती से बाँधे,
लगता हर रोज यही कि
तुम आकर सिरहाने खड़े होगे,
हाथ थामोगे और ले चलोगे
मुझे भी उसी दुनिया में जहाँ तुम हो।
लेकिन अभी मैं इन्तजार मे हूँ, तुम कहाँ हो?
तुम हृदय में, प्राण में, हर श्वास में,
हर रोम मे बसते हो मेरे,
मैं नैन में, तृप्ति में, हर क्षण में,
हर विषाद- हर्ष में साथ रहती थी तुम्हारे,
चकोर की तरह पथ निहारते
छोड़ कर तुम चाँद बन गये मेरे,
धरती मुझे बनाकर तुम अम्बर बन गये मेरे।
क्षितिज तक निहारूंगी तुम्हें ही,
हर आवाज़ मे पुकारूंगी तुम्हें ही,
चेहरे की उदासी में तुम्हारी आरजू है,
मेरी हर बात में तुम्हारी जुस्तजू है।
मेरा इन्तजार बार-बार कहता है तुमसे,
अब तुम्हें लौट आना चाहिये,
लेकिन अभी मैं यहाँ हूँ, तुम कहाँ हो?
जोधपुर, राजस्थान