सुबह के लिये शाम का, होना जरूरी है।
वृक्ष काटने हों जरूरी, तो जरूर काटिये,
उससे भी ज्यादा पौधों का, रोपना जरूरी है।
जीवन अगर मिला है, मरना तो पडेगा ही,
जो आया इस धरा पर, जाना भी जरूरी है।
बढ रहा प्रदूषण धरा पर, सूर्य भी तो तप रहा,
गर्मी से राहत मिले, वृक्षारोपण भी जरूरी है।
करते नही विरोध हम, विकास के मार्ग का,
बढती जरूरतें हों तो, विकास भी जरूरी है।
अनियंत्रित हो विकास, तो विनाश लाता है,
प्रकृति का सन्देश भी, समझना जरूरी है।
विद्या लक्ष्मी निकेतन 53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश