चलो आज फिर से वहीँ लौट जाएँ

डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 
चलो आज फिर से वहीँ लौट जाएँ....
मुझे याद आते हैं, वो जीवन के लम्हे,
गुजारे हैं संग संग, सदा हँसते हँसते।
वो गीतों का गाना, तुम्हारा गुनगुनाना,
पूनम की रातें, और छत पर जाना।
बाँहों में बाहें, फिर सपने सजाना,
कल की हैं बातें, जब छेड़ा था तराना।
याद आ रहा है, वह सावन का महीना,
पहली बारिस में, संग संग भीग जाना।
कभी छुप के मिलना, निगाहें चुराना,
तन्हाई की खातिर, कभी पिक्चर जाना।
रखकर हाथ उस रोज, मेरे लब पर,
नैनों के दर्पण में, दिल की बात पढ़ना।
चलो आज फिर से वहीँ लौट जाएँ,
फिर से युवा बन, गीत कोई गायें।
खिले हैं बगिया में, जो पुष्प प्यारे प्यारे,
उन्ही को निहारे, अब उन्ही को संवारे।
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश

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