हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की स्थापना, उद्देश्य एवं योजनाएं


हितेंद्र शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार द्वारा हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की स्थापना 2 अक्टूबर 1972 को की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक और समकालीन कला, संस्कृति, भाषा, साहित्य का संरक्षण,  प्रचार प्रसार, प्रलेखन और प्रकाशन हैं। अकादमी की मुख्य योजनाओं में प्रदेश के साहित्यकारों, कलाकारों को प्रोत्साहन और सम्मान प्रदान करने के लिए पुस्तकों की खरीद,  साहित्य पुरस्कार, पुस्तक प्रकाशन के लिए वित्तीय अनुदान, साहित्यिक पत्रिकाओं को प्रकाशन के लिए अनुदान,  कला सम्मान,  शिखर सम्मान,  पहाड़ी चित्रकला और चंबा रुमाल प्रतियोगिताओं का आयोजन तथा पुरस्कार प्रदान करना,  लेखकों, कलाकारों को सृजन के लिए आवासीय सुविधा प्रदान करने हेतु संस्कृति सदन का संचालन एवं संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, पहाड़ी और उर्दू पांच भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन हैं।   


अकादमी द्वारा हिंदी की त्रैमासिक शोध पत्रिका सोमसी और पहाड़ी अर्धवार्षिक पत्रिका हिमभारती तथा संस्कृत अर्धवार्षिक पत्रिका श्यामला का प्रकाशन  किया जा रहा है । इन पत्रिकाओं के माध्यम से लेखकों को अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाने के लिए मंच प्राप्त होता है। हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक लोक संस्कृति, मेले, पर्व, त्यौहार के प्रलेखन के लिए अब तक लगभग एक सौ डॉक्यूमेंट्री तैयार की जा चुकी हैं जो अकादमी के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं।



हिमाचल की पहाड़ी भाषा और साहित्य के संरक्षण के लिए पहाड़ी-हिंदी शब्दकोश, सांस्कृतिक शब्दावली  पुस्तकें प्रकाशित की हैं और वर्तमान में हिंदी-पहाड़ी पर्यायवाची शब्दकोश का कार्य प्रगति पर है।  डिक्शनरी ऑफ पहाड़ी डायलैक्टस और किन्नौरी ग्रामर एंड डायलैक्ट, लाहौल स्पीति, कुल्लू एंड सिराज, एथनोग्राफी ऑफ बुशहर स्टेट सिरमौर रियासत का इतिहास, कटोच वंश का इतिहास आदि दुर्लभ पुस्तकों का भी रीप्रिंट किया जा चुका है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास, सांचा एक प्राचीन  ज्योतिष एवं तंत्र विद्या, हिस्ट्री ऑफ हिमाचल प्रदेश, श्री रघुनाथ एवं कुल्लू दशहरा, हिमाचल का लोक संगीत, लोक गाथाएं, लोक कथाएं  आदि पुस्तकें भी  प्रकाशित हुई हैं। इन वर्षों में अकादमी द्वारा  हिमाचल की प्राचीन लिपि, हिमाचल  लोक रामायण, हिमाचल का संस्कृत साहित्य, आदि पुस्तकों का प्रकाशन महत्वपूर्ण कार्य है।


हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी वर्तमान में एनआईटी हमीरपुर की एक महत्वपूर्ण परियोजना  हिमाचली डिजीटल हिंदी अनुवाद का डिवाइस बनाने में पहाड़ी कांगड़ी का डाटा उपलब्ध करवाने में सहयोग कर रही है।  यह एक पायलट प्रोजेक्ट है, इसके बाद एनआईटी द्वारा किन्नौरी मंडयाली सिरमौरी महासवी कुल्लवी, चंबयाली आदि प्रदेश की अन्य  बोलियां  पर भी  डिजिटल डिवाइस तैयार किए जाने की योजना है जिसमें अकादमी डाटा उपलब्ध करवाने के लिए सहयोग करेगी। केंद्रीय परियोजनाओं के अंतर्गत हिमाचल अकादमी द्वारा कंप्यूटर  प्रशिक्षण केंद्र शिमला और हमीरपुर में संचालित किए जा रहे हैं। कंप्यूटर सेंटर के माध्यम से युवाओं को  कंप्यूटर में ओ लेवल डिप्लोमा,  सीसीसी कोर्स और उर्दू का डिप्लोमा करवाया जाता है। अब तक लगभग 2000 विद्यार्थी यहां से प्रशिक्षित हो चुके हैं और सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।


हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी वर्तमान में फेसबुक लाइव के माध्यम से विगत चार महीनों से हर रोज शाम सात बजे साहित्य कला संवाद कार्यक्रम का प्रसारण कर रही है। इस कार्यक्रम के माध्यम से  अब तक एक सौ तीस से अधिक सफल कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं जिनमें कलाकारो, साहित्यकारों, पत्रकारों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए गए, व्याख्यान प्रस्तुत किए और अपनी रचनाओं का भी पाठ किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से अनेक ज्वलंत विषयों पर भी परिचर्चा आयोजित की जाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, सांस्कृतिक नीति, संस्कृत नीति आदि विषयों पर व्यापक परिचर्चा के माध्यम से सफल कार्यक्रम आयोजित हुए हैं। इन सभी कार्यक्रमों की वीडियो अकादमी के फेसबुक पेज पर तथा यूट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध हैं जो कि अकादमी का एक महत्वपूर्ण डाटा बैंक बन गया है और जिसका हजारों दर्शक, श्रोता और जिज्ञासु लाभ उठा रहे हैं।


अकादमी द्वारा पहाड़ी चित्रकला, शिमला अतीत एवं वर्तमान, कुल्लू दशहरा  और मंडी शिवरात्रि आदि  फिल्मों का निर्माण भी किया गया है। इसके अलावा प्रदेश के सम्मानित एवं वरिष्ठ साहित्यकारों तथा कलाकारों के जीवन वृत्त और उनके महत्वपूर्ण योगदान के आधार पर  डॉक्यूमेंट्री भी तैयार की गई है। अकादमी की स्थापना के 50 वर्ष पूर्ण होने को है । इस उपलक्ष्य में कला साहित्य भाषा एवं संस्कृति के क्षेत्र में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कार्य करने का संकल्प है। अकादमी आगामी वर्षों में  विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से विद्वानों को प्रोजेक्ट देखकर शोध कार्य करवाने जा रही है। अकादमी द्वारा एक सार्वजनिक पुस्तकालय का भी संचालन किया जा रहा है जिसमें लगभग 18000 पुस्तकें विभिन्न भाषाओं में तथा साहित्य की सभी विधाओं में संग्रहीत हैं और शोधकर्ताओं, पाठकों को अध्ययन के लिए उपलब्ध करवाई जाती हैं। अकादमी पुस्तकालय में हजारों हस्तलिखित प्राचीन पांडुलिपि या टांकरी,  शारदा, गुरमुखी पाबुची, पंडवानी, चंदवानी भट्टाक्षरी आदि लिपियों में उपलब्ध हैं। वर्तमान में राज्य संग्रहालय शिमला  और अकादमी पुस्तकालय तथा प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है। अकादमी द्वारा हिमाचल डिजिटल लाइब्रेरी संचालित किए जाने की योजना है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में, निजी संग्रह में और संग्रहालयों, पुस्तकालयों में उपलब्ध दुर्लभ पुस्तकों तथा प्राचीन पांडुलिपियों को भी डिजिटलाइजेशन करके इसमें शामिल किया जाएगा ताकि इंटरनेट के माध्यम से भी इन पांडुलिपियों और पुस्तकों के अध्ययन की सुविधा उपलब्ध हो सके।


हिमाचल अकादमी द्वारा प्रदेश के साधनहीन कलाकारों और साहित्यकारों को प्रतिमाह 1000/- की वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है। पारंपरिक लोक कलाओं के संरक्षण और प्रशिक्षण के लिए गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत लुप्त प्रायः शिल्प कलाओं के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण केंद्रों का संचालन किया जाता है । वर्तमान में पहाड़ी चित्रकला की कांगड़ा शैली और मंडी कलम तथा काष्ठ कला, चंबा रुमाल और वाद्य यंत्रों के निर्माण के लिए प्रशिक्षण केंद्रों का संचालन किया जा रहा है। पहाड़ी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में अकादमी द्वारा पहाड़ी कविता संग्रह, पहाड़ी कहानी संकलन, हिमाचली नाटक संग्रह और पुरस्कृत साहित्यकारों की कविताओं तथा कहानियों के संग्रह प्रकाशित किए जाने की योजना है।


संयोजक साहित्य कला संवाद कार्यक्रम कुमारसैन, शिमला, हिमाचल प्रदेश


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