कूर्मि कौशल किशोर आर्य, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हमारे देश की गलत शिक्षा नीति और ज्ञान प्राप्त करने की जगह लोगों की सिर्फ धन कमाने की प्रवृत्ति के कारण ज्यादातर लोगों को जीवन में अपेक्षित सफलताएं नहीं मिलती हैं और एक स्वच्छ परिवार, समाज व देश का निर्माण नहीं हो पा रहा है। सफलता नहीं मिलने पर एक समय सीमा तक प्रयास करने के बाद वे लोग कुंठित होकर सब कुछ भाग्य पर छोड़ देते हैं। हमारे देश के लोगों को जन्म से मरते दम तक धूर्त लोगों ने साजिश करके अनगिनत पाखंड और आडम्बर में बांधे रखा हुआ है। इसके लिए धर्म ग्रंथों में अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए मिलावट भी कर रखी है। इनके कारण देश के बहुजन मूलनिवासी समाज का बहुत नुकसान हो चुका है और आज भी लगातार हो रहा है। अगर जल्द ही इस साजिश को समझकर नहीं सम्भले तोे मूलनिवासी न जाने कब तक नुकसान उठाते रहेंगे?
जापान, नीदरलैण्ड, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देश भारत से विज्ञान और आविष्कार के मामले समेत विकास के सभी मामले में बहुत आगे निकल चुके हैं। वे आज इतना आगे निकल गये कि हमारे देश के विभिन्न सरकार को हजारों करोड़ रुपये ऋण समेत विभिन्न वैज्ञानिक टेक्नोलाॅजी दे रहे हैं, पर हमारे भारत देश में आज भी लोग पंडे, पुरोहित, मुल्ले, पादरी समेत अन्य पाखंडी और आडम्बर फैलाने वाले नकली धर्म गुरूओं के शिकार होकर अपने घरों की इज्जत ,धर्म और धन लुटवा रहे हैं।
इस पर विचार करना बहुत आवश्यक है कि जो भारत कभी विश्व गुरु था, सोने की चिड़ियाँ कहलाता था, उस देश की इतनी दयनीय हालत क्यों, किसने, कैसे और किसलिए किया ये सब? हमारे देश में जहाँ राजा और महाराजाओं में बलिराजा, राजा भोज, राजा कृष्णदेव राय, छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति सादसी सिंधिया महाराज, छत्रपति राजर्षि शाहूजी महाराज ने अपने अपने राज्यों में वीरता, समतावादी नीति, कर्तव्यनिष्ठा, न्यायप्रियता, निष्पक्षता के आधार रखने के साथ मिसाल कायम की थी और गौतम बुद्ध, स्वामी महावीर, संत कबीर, संत तुकाराम, संत रहीम, ज्योतिबा फूले, सावित्री बाई फूले, राजा राम मोहन राय, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, संत गाडसे, संत रामा स्वामी पेरियार, रामस्वरूप वर्मा, लल्लई यादव, कांशीराम, शहीद जगदेव प्रसाद, आरएल चन्दापुरी जैसे लाखों समाज सुधारकों ने भारत समेत पूरी दुनियां को सत्य, अहिंसा, प्रेम, सौहार्द, सदभावना, सहयोग, भाईचारा और शांति का संदेश दिया था। ऐसे महान देश के मूलनिवासी समाज के 95 प्रतिशत लोग विदेशियों के द्वारा बुने गये जाल में इस तरह फंसे हुए हैं कि उन्हें उसमें से निकलने का रास्ता समझ में नहीं आ रहा है और ऐसा तब है जब इस 95 प्रतिशत आबादी को समझाने के लिए लगातार कोई न कोई महान समाज सुधारक जन्म लेकर सही मार्ग दिखाते रहे हैं। इसके बावजूद भोले-भाले लोग खासकर महिलाएं खुद को मनुवादियों द्वारा बुने गये जाल से चाहकर भी नहीं निकल पा रही है। वे लोग अपने बुद्धि, अपने विवेक का उपयोग करना ही नहीं चाहते। कोई तर्क, विचार, वैज्ञानिक सोच अपने मन व मष्तिक में लाना ही नहीं चाहते।
विदेशी यूरेशियन लोगों ने साजिश करके भारत के मूलनिवासी समाज को शिक्षा प्राप्त करने, धन रखने, नये कपड़े व आभूषण पहनने, पर्व-त्योहार की खुशियाँ मनाने, सार्वजनिक नदी, नहर, रास्ते, कुएं, जलाशय के उपयोग करने, यहां तक कि केरल और कुछ अन्य राज्यों में कथित शूद्र महिलाओं को अपने वक्ष (स्तन) तक के ढ़कने से वंचित रखा। प्रताड़ना के लिए किसी शूद्र के द्वारा वेद मंत्र पढ़ने व सुनने पर जीभ काटने, कान में शीशा पिघलाकर डालने, गूंगा-बहरा कर दिये जाने, विधवा को उनके पति के चिता के साथ जलाकर सती होने, शूद्र पुरुषों के विवाह होने पर उनकी नव वधू को शुद्धीकरण के नाम पर ब्राह्मण जाति के पास 3-7 सप्ताह शारीरिक सेवा देने जैसे अमानवीय परम्परागत नियम बना रखे थे। इन अमानवीय परम्परागत नियमों का समय-समय पर विभिन्न समाज सुधारकों ने विरोध किया और प्रबल विरोध के बावजूद वे अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल भी हुए, लेकिन साजिश से अभी तक पूरी तरह आजाद नहीं हो पाये हैं। इस बात पर कोई भी गौर करने के लिए तैयार नहीं है कि ब्राह्मण, क्षत्रित्र, वैश्य वर्ण में जातियाँ सीमित हैं, लेकिन मूल निवासी जो देश की आजादी का 85 प्रतिशत से भी अधिक है, उन्हें 6743 जातियों बांट दिया? ऐसा इसीलिए किया गया ताकि यह बहुजन बहुसंख्य मूलनिवासी कभी संगठित नहीं हो सके।
भारत में 85 प्रतिशत मूलनिवासी समाज के वोट से सरकारें बनती है, पर नेता मुट्ठी भर आबादी वाले सवर्ण लोग बनते हैं। मतलब वोट बहुजनों 85 प्रतिशत का, पर शासन सवर्ण जाति 15 प्रतिशत का। आज आजादी के बाद भी भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के चारों आधार स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता पर इन सबल और सम्पन्न लोगों का ही कब्जा है। शायद इसी के चलते बिना किसी मांग, बिना किसी आयोग का गठन किये ही सवर्ण जाति के सबल और सम्पन्न लोगों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण भी देने के कानून भी बना दिया है। इसके विपरीत वर्षों से मांग कर रहे राजस्थान के गुर्जर, हरियाणा-पंजाब के जाट, महाराष्ट्र के मराठा, गुजरात के पाटीदार समेत देश के अन्य राज्यों के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समाज के 85 प्रतिशत लोगों की आबादी के अनुसार आरक्षण देने की मांग पूरी नहीं की गई। अब कोई बताये कि जिनकी आबादी 15 प्रतिशत से भी कम है, उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण देने का क्या तुक है?
अब सवाल है कि आखिर इस खाई को कैसे पाटा जाए? तो इसका एक मात्र स्थाई उपाय है बिना देरी किये 85 प्रतिशत बहुजन मूलनिवासी समाज द्वारा देश के केन्द्रीय सत्ता और विभिन्न राज्यों की सत्ता पर अधिकार किया जाना चाहिए। सवर्ण जाति के सभी नेताओं का बहिष्कार करना चाहिए और पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समाज ईमानदार, मिलनसार, कर्तव्यनिष्ठ, निष्पक्ष, जूझारु, समतावादी, न्यायकारी और क्रांतिकारी साथियों को नेता बनाकर उन्हें लोकसभा, विधान सभा समेत अन्य एसेम्बली में जीताकर भेजना चाहिए और उन पर दबाब बनाकर जन उपयोगी और देश उपयोगी कार्य करवाना चाहिए।
ऐसा बिल्कुल नहीं हैं कि सवर्ण जाति में सभी लोग बेईमान और गद्दार हैं, गलत और साजिश करने वाले हैं। सवर्ण जाति में कुछ लोग हैं जो समाज में विकास के मामले में पिछड़ जाने पर उनके विकास के पक्षधर हैं, पर जो गलत है उनका हर हाल में हर कीमत पर, हर जगह से विरोध और बहिष्कार करना आवश्यक हो गया है। इसीलिए आईए! हम 85 प्रतिशत बहुजन मुलनिवासी को बौद्धिक, वैचारिक और मानसिक रूप से मजबूत करते हुए उन्हें सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक और राजनैतिक रूप से सर्वागीण विकास करने की दिशा में क्रांतिकारी सकारात्मक कदम उठायें। विचार कर लीजिए कि चुनाव जीतकर आये सवर्ण जाति के सांसद पर भी ध्यान देने की कोशिश कीजिए कि कैसे और किन परिस्थितियों में 15 प्रतिशत से भी कम आबादी वाले लोग विभिन्न राजनैतिक दल के सहयोग से आधे से ज्यादा सीट पर जीतकर आये हैं? क्या 85 प्रतिशत बहुजन मूलनिवासी समाज का काम हर चुनाव में सिर्फ वोट देकर सरकार बनाना और खुद शोषित पीड़ित रहना भर रह गया है?
आईए! आज और अभी से नई वैचारिक क्रांति की शुरुआत करते हुए अपने 85 प्रतिशत समाज के सर्वागीण विकास के लिए शंखनाद करें। अपना नेता और अपनी सत्ता कायम करें। अब नारा दें कि- वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा नहीं चलेगा। इसके लिए आहवान करना होगा कि भारत समेत दुनियां के बहुजन एक हो जाओ।
संस्थापक राष्ट्रीय समता महासंघ