संजाबई के गीत


डाॅ दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

1

छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाय,

जिसमें बैठी संझा बाई सासरे जाय,

घाघरो घमकाती जाय, लूगड़ो लटकाती जाय

बिछिया बजाती जाय'।

म्हारा आकड़ा सुनार, म्हारा बाकड़ा सुनार

म्हारी नथनी घड़ई दो मालवा जाऊं 

मालवा से आई गाड़ी इंदौर होती जाय

इसमें बैठी संझा बाई सासरे जाय।'

'संझा बाई का सासरे से, हाथी भी आया

घोड़ा भी आया, जा वो संझा बाई सासरिये

 

2

: संझा तू थारा घर जा कि थारी मां

मारेगी कि कूटेगी

 

चांद गयो गुजरात हरणी का बड़ा-बड़ा दांत,

कि छोरा-छोरी डरपेगा भई डरपेगा।'

 


'म्हारा अंगना में मेंदी को झाड़,

दो-दो पत्ती चुनती थी

गाय को खिलाती थी, गाय ने दिया दूध,

दूध की बनाई खीर

खीर खिलाई संझा को, संझा ने दिया भाई,

भाई की हुई सगाई, सगाई से आई भाभी,

भाभी को हुई लड़की, लड़की ने मांडी संझा'

'संझा सहेली बाजार में खेले, बाजार में रमे

वा किसकी बेटी व खाय-खाजा रोटी वा

पेरे माणक मोती,

ठकराणी चाल चाले, मालवी बोली बोले,

संझा हेड़ो, संझा ना माथे बेड़ो।'

 

आगर (मालवा) मध्य प्रदेश

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