प्रीति शर्मा "असीम", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
मानो या न मानो, कुछ सच?
इन्सानियत को शर्मसार कर जाते है।
जब अखबारों में,
कत्लेआम, मार-धाड़,
चोरी और लूटपाट के समाचार आते है।
चौराहे पर जिंदगी नीलाम हो जाती है।
लेकिन लोगों की आवाज़,
गाडियों की रफ्तार में खामोश हो जाती है।
मानो या न मानो, कुछ सच?
समाज को शर्मसार कर जाते हो।
जब अखबारों में,
गरीब की बेबसी की मार्मिक कहानी,
भ्रष्टाचार -मंहगाई की मारा- मारी,
औरतों के सम्मान पर हमले किये जाते है।
तीन वर्ष की अबोध बच्ची से लेकर,
सत्तर साल की वृद्धा के,
बलात्कार के समाचार आते है।
और हर अपराध पर समाजिक सोच....!
हमें क्या लेना ?
कह कर खामोश हो जाती है।
मानो या न मानो, कुछ सच?
रिश्तों को शर्मसार कर जाते है।
जब रिश्ते विश्वास पर विश्वासघात कर जाते है।
फर्ज निभाने वाले पर इल्ज़ाम लगायें जाते है।
घर को, घर बनाने की बजाए,
मतलब के अखाड़े लगाए जाते है।
ऐसे लोग समाज में मगरमच्छी आंसुओं के साथ
लोगों से सहानुभूति टटोलते पाए जाते है।
फर्ज निभाते नही और अधिकारों की बोली बोलते है।
जुल्म होता है, दहेज के लिए.....
बेटी के पैदा होते ही प्रश्नचिन्ह लगाए जाते है।
लोग क्या कहेंगे खोखली सोच से,
आत्महत्या के समाचार अखबारों में आते है।
लडकियां ही नही
लड़कें भी विवाहिक रिश्तों में सतायें जाते है।
बहू तो बेचारी है कुछ, कर नही पाते है।
मानो या न मानो, कुछ सच?
जिस समाज में लोग अन्याय के खिलाफ,
बोलेंगे ही नही।
वो इन्सान, समाज और रिश्ते
भविष्य में रद्दी भाव बिक जायेंगे।
अपनी इन्सानियत को अगर पहचान जाओंगे।
मनुज से देवता बन जाओंगे।।
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
Tags
Himachal