राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में अनेकानेक तीर्थ स्थल व पौराणिक काल के इतिहासपरक रमणीय स्थल है, परन्तु इनमे सर्वोपरि स्थान मणिकर्ण तीर्थ स्थल को ही प्राप्त हुआ है। हो भी क्यों न, यहां स्वयं जगतमाता पार्वती एवं त्रिभुवनपति भगवान शंकर स्वयं पधारे थे। यह स्थान ऊंची- ची पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जिन पर अनेक प्रकार के ऊंचे-ऊंचे वृक्ष है, जो इस स्थान को और भी आकर्षक बनाते है। मणिकर्ण की विशालकाय चोटियां और कल कल करती पार्वती नदी यहां के सौंदर्य पर चार चांद लगा देती है।
ब्रह्मांड पुराण के अनुसार एक दिन माता पार्वती इस स्थान पर जल क्रीड़ा कर रही थी। इस क्रीडा में उनके कान की मणि गिर गई। अपने तेज प्रभाव के कारण वह मणि धरती पर न टिक सकी और सीधे पाताल लोक में जा गिरी और पाताल लोक में मणियों के स्वामी भगवान शेषनाग के पास पहुंची। शेषनाग में उसे अपने पास रख लिया। भगवान शंकर के गणों ने मणि को सब और ढूंढा, परंतु उन्हें मणि कहीं भी नहीं मिली। अंत में भगवान शंकर ने जब त्रिनेत्र द्वारा ध्यान लगाया तो पता चला कि मणि शेषनाग के पास है और उन्होंने इसे अपने पास रखने का दु:साहस किया है। इससे भगवान शंकर क्रोधित हो गए और तीसरा नेत्र खोल दिया, जिस कारण प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो गई। सब और त्राहि-त्राहि मच गई। शेषनाग घबरा गए उन्होंने हुंकार भरी और पार्वती की कर्ण मणि को जल के साथ पृथ्वी की ओर उछाला क्षमता आ गई। शेष नाग के हुंकार के साथ उनके विशाल मुखमंडल में मणि के साथ साथ अथाह जल भी था, जिसमे उष्णता भरी हुई थी। उन्होंने जल सहित कर्ण की मणि इसी स्थान पर गिरा दी। इसी कारण इस स्थान का नाम मणिकर्ण पड़ा।
जल हमेशा के लिए गर्म जल के चश्मे बनकर कुंड के रूप में तीर्थ रूप में परिवर्तित हो गए। यह जल सतयुग से लेकर आज तक गर्म है। राम चंद्र गुरु विशिष्ट से गुरु दीक्षा लेने के पश्चात यहीं पर भगवान शिव की आराधना की थी। पहले यहां पर नौ शिव मंदिर हुआ करते थे। इस स्थान पर एक तप्त कुण्ड भी है, जहां की उष्णता बहुत ही गर्म है। जल को विष्णु तथा शिव को अग्नि रूप माना गया है। इस गर्म जल में दोनों रूपों का समावेश है। यहां का स्नान परम सिद्धि तथा मुक्ति दायक माना गया है। यह गर्म जल स्वास्थ्य लाभ देने वाला है। इसके स्नान से गठिया ,जोड़ों के दर्द और पेट की गैस का अनायास ही उपचार होता है। मणिकरण के चश्मों में भोजन पक जाता है। चावल की पोटली को बांधकर के जल में डाल दिया जाता है, जो लगभग 20 मिनट में पककर के बाहर निकाला जाता है।
श्रद्धालु इस तरह चावलों को पका करके प्रसाद के रूप में अपने घरों को ले जाते हैं। चपाती बना करके पानी में डाल दी जाए तो पकने पर ऊपर आ जाते हैं। खाने पर स्वाद पुन्डिंग की तरह होता है। रोटी आधे घंटे में तैयार होती हैं। दाल बर्तनों में डालकर के पकाई जाती हैं। बर्तन पर ढक्कन लगाकर के पत्थर का भार रख दिया जाता है, ताकि बर्तन जल में टेढ़ा ना हो जाए।
संस्कृति संरक्षक आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश
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