डा हिमेंद्र बाली "हिम", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
रजवाड़ाशाही का वह भयावह दौर था
दुख शोषण का न कोई ओर छोर था.
अनगिनत पीड़ा की अनसुनी कहानियां थीं
सागर से गहरी पहाड़ों से ऊंची परेशानियां थीं.
आजादी के पहले विप्लव में पर्वत तिलमिला उठे थे
अंग्रेज भी ताकत से बौखला उठे थे.
बुशैहर के दूम्ह सुकेत विद्रोह की ज्वालाएं भड़कीं
कहलूर के जुग्गा मण्डी के गद्दर से राजाओं की जमीं दरकी़
प्रजामण्डल बने भीषण संघर्ष का सैलाब आया
घर खलिहान में उफनता इंकलाब आया.
आवाज अभी बिखरी थी सिरमौर के लाल की प्रतीक्षा थी
प्रजामण्डल के बल के लिए वक्त की परीक्षा थी.
सत्याग्रह को डा परमार जैसा नेता मिल गया
राजाओं का सदियों पुराना राज हिल गया.
इनके प्रयासों से संघर्ष की तेज तीक्ष्ण तलवार बनी
सांगरी में इनकी उपस्थिति में आजादी से पर्व स्वतंत्र सरकार बनी.
तत्तापानी से सत्याग्रहियों का प्रचण्ड प्रहार हुआ
सुकेत का सेन शासक आत्मसमर्पण को तैयार हुआ.
फिर तो हर रियासत में सत्याग्रह का जयघोष हुआ
हिमाचल के जन्म से आक्रोश जनता का खामोश हुआ
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सन् 1951 में मुख्यमंत्री बन लोकतंत्र को दिया आधार
पहाड़ की संस्कृति को निरंतर देते रहे विस्तार.
आखिर दिन आया जब विशाल हिमाचल निर्मित हुआ
हर पहाड़ मुस्कराया जन जन हर्षित हुआ.
परमार अंदर तक पूरे पहाड़ी थे
सादगी की मूरत जन जन हितकारी थे.
साहित्यकार कुमारसैन शिमला.
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