प्रीति शर्मा "असीम", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बंद पड़ी सोच को ,
जब हिलाना ही नहीं है।
खबर पढ़कर भी जब,
आवाज़ उठाना ही नहीं है।
टुकड़ा यह कागज का रद्दी नहीं,
तो ........और क्या है़ं।
कब तक , खुद को
दूसरे की आग से बचाओगे।
नफ़रतों की चपेट में,
तुम भी तो आओगें।
यह बोलेगा.......!
वो बोलेगा.......?
गलत को गलत ,
कहने को भी इतना क्यों सोचेगा।
तू क्यों........नही बोलेगा।
अच्छे समाज को कौन बनायेंगा।
कलयुग है, भाई कलयुग है।
यह तो सब रोते है।
सतयुग कोई बाहर से नहीं आयेगा।
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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