कमलेश चौहान, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
किस किस का चेहरा पढूं
हर चेहरे के पीछे
इक शैतान लगता बैठा है।
आधुनिकता के इस
दौर में
किसने इन्सानियत का
घोंट दिया गला हैं।
डर सा लगता है
अब गली कूचों में
तन्हा गुजरनें में (चलने में)
किस किस का चेहरा पढूं
हर चेहरे के पीछे
इक शैतान लगता बैठा है।
इन्सानियत, नैतिकता लगता
एक सपना है
कहां गए वह पुरुषोत्तम राम
रावण का हर जगह
राज लगता है
किस किस का चेहरा पढूं
हर चेहरे के पीछे
इक शैतान लगता बैठा है ।
कैसी ये हवा चली
मन में इक टीस सी जगी
सपना जो देखा था,
शिक्षित होकर
सभ्य समाज बनाने का,
भयावह लगने लगा है,
अब तो
शिक्षित यह समाज भी,
किस किस का चेहरा पढूं
हर चेहरे के पीछे
इक शैतान लगता बैठा है।
कोटखाई शिमला
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