अमेरिका में बसे पंजाब मूल के ग्रैंड मास्टर डा.जसबीर सिंह की सांसों में बसता है भारत


डा.आकांक्षा सक्सेना, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


सब जानते हैं कि मार्शल आर्ट्स का  मतलब युद्ध की कला से है। ये लड़ाई की कला से जुड़ा पंद्रहवीं शताब्दी का यूरोपीय शब्द है, जिसे आज एतिहासिक यूरोपीय मार्शल आर्ट्स के रूप में जाना जाता है। मार्शल आर्ट के एक कलाकार को मार्शल कलाकार के रूप में संदर्भित किया जाता है। आज चीन में मार्शलआर्ट और कुंगफू जैसी विद्या बोधीधर्मन नामक भारतीय की ही देन है। बोधिधर्मन् ( 520-526 ई) न सिर्फ मार्शल आर्ट, बल्कि आयुर्वेद, सम्मोहन और पंच तत्वों (भूमि, गगन, वायु, अग्नि व जल) को काबू में करने की विद्या बखूबी जानते थे। उन्होंने हमेशा अपने ज्ञान का प्रयोग लोक कल्याण में किया। इसी बोधिधर्मन की परिपाटी को आगे बढ़ा रहे हैं बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न भारतीय ग्रांड मास्टर जसबीर सिंह। जसबीर सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। दुनिया उन्हें मार्शल आर्ट्स के पर्याय के रूप में जानती है। 
पेश हैं डा.आकांक्षा सक्सेना की भारतीय ग्रांड मास्टर जसबीर सिंह से बातचीत के अंश-



डा.आकांक्षा सक्सेना-सर! आपका पूरा नाम क्या है और आपका जन्मस्थान कहां हैं? वर्तमान में आपका कहां निवास स्थान कहां पर हैं? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-मेरा पूरा नाम ग्रैंड मास्टर प्रो. डा. जसबीर सिंह है। मेरा जन्म भारत में पंजाब के कपूरथला में हुआ था। वर्तमान में यूएसए के कैलीफोर्निया में बतौर अमेरिकन नागरिक निवास कर रहा हूं। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-आपने मार्शल आर्ट को ही अपने करियर के रूप में क्यों चुना?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-सच कहूँ तो मैंने कभी भी इसे अपने कैरियर के रूप में नहीं सोचा था, पर अब मेरे लिए मार्शल आर्ट्स मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है। आज मैं कह सकता हूं कि मार्शल आर्ट एक जीने की अद्भुत कला का नाम है। यह लोगों को सुरक्षा देने का एक सुअवसर की तरह है। जिसे मैं सर्वसुलभ करने को संकल्पित हूं। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-क्या आपने मार्शल आर्ट में कोई डिग्री या डिप्लोमा भी किया है? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-हाँ, मैंने मार्शल आर्ट में पीएचडी की है। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-क्या आपको बचपन से लगन थी मार्शल आर्ट की? ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह- हाँ, बचपन से। जब मैं छोटा था तो ब्रूसली की फिल्में मुझे मार्शल आर्ट्स की तरफ आकर्षित करती थीं और बाद में यही आकर्षण मेरा जुनून और मेरी लाईफ बन गया। 



डा.आकांक्षा सक्सेना-ये ताईकवंडो और मार्शल आर्ट में क्या बड़ा अंतर है?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-ताइक्वांडो एक स्पोर्ट्स मार्शल आर्ट्स हैं, जिसकी उत्पत्ति कोरिया में हुई। हालांकि इसे पौराणिक मार्शल आर्ट्स भी कहा जा सकता है। वर्तमान में ताइक्वांडो एक ओलंपिक स्पोर्ट्स है, जिसमें मैं वल्र्ड ताइक्वांडो हैडक्वाटर्स कुक्कीवाॅन कोरिया से सर्टिफाइड हूं। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-आपका मार्शल आर्ट में व्हाइट बेल्ट से ब्लैक ब्लैक का सफर किन चुनौतियों से भरा रहा? क्या इसमें घातक इंजरी (चोट) लगने का खतरा रहता है?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-हमारे देश भारत में उन दिनों मार्शल आर्ट को इतनी प्राथमिकता नहीं मिलती थी और घर का कोई भी सदस्य मुझे मार्शल आर्ट सीखने नहीं देना चाहता था।  उन्हें लगता था कि मैं मार्शल आर्ट्स सीख कर गुंडा बन जाऊंगा, परन्तु मेरी माँ ने मुझे समझा और मुझे पूरा सपोर्ट किया। मेरा मार्शल आर्ट्स सीखना मेरे जीवन का एक टर्निंग प्वाइंट था। मैंने अब तक पांच वल्र्ड मार्शल आर्ट चैम्पियनशिप खेली हैं और सभी में मैं जीता हूं, जिनमें  10-12 नवम्बर 2000 को इटली में आयोजित वल्र्ड मार्शल आर्ट एंड किक बाॅक्सिंग चैम्पियनशिप में 5वें स्थान पर रहा। 18-19 नवम्बर 2000 को पेरिस में आयोजित वल्र्ड ताइक्वांडो डू मूडो चैम्पियनशिप में तीसरा कांस्य पदक जीता। 20-22 फरवरी 2001 का थाईलैंड में आयोजित 12वें इंटरनेशनल मुयेथाई और कराटे चैम्पियनशिप में सिल्वर मैडल जीता। 23-25 मई को नेपाल में आयोजित 8वें अंतरराष्ट्रीय कराटे एंड किक बाॅक्सिंग चैम्पियनशिप में तीसरा कांस्य पदक जीता। 15 मई 2005 को इटली में एसोचायजिओन सेंट्री स्पोर्टिवी अंतर्राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में प्रथम स्वर्ण पदक जीता। 
अंततः मैंने अभ्यास, दृढ़ता, धैर्य और फिर पूर्णता। इस मंत्र को अपने जीवन में उतारा और आगे बढ़ता गया। कहते हैं ना ‘‘नो पेन, नो गेन’’ इंजरी तो कई बार हुई, पर मैं जीतने के लिए नहीं, बल्कि सीखने के लिए खेलता रहा। आज भी मैं सीखने के लिए ही खेलता हूं। सच बोलूं तो मैं अपने लाइफ का पहला स्टेट मैच हारा था। शायद इसीलिए मैं आज तक जीतता चला आ रहा हूं और आज एक सफल खिलाड़ी हूं। 



डा.आकांक्षा सक्सेना-मार्शल आर्ट् में अगर आपको कुछ सुधारने और नया करने का मौका मिले तो आप क्या नया करना चाहेंगे?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-मार्शल आर्ट्स कई प्रकार के हैं। आज कल मार्शल आर्ट्स के नियम और कानून कुछ अलग हो गए हैं। मैं चाहता हूं कि मार्शल आर्ट्स को भी अकादमी शिक्षा से जोड़ा जाये, जिसमें ग्रेजुएशन से लेकर डाॅक्टरेट तक की डिग्री प्राप्त की जा सके। इसको वैश्विक स्तर पर बढ़ाने के लिए शिक्षा आयोग अनुदान दे, जिससे मार्शल आर्ट का भी एकेडमिक ग्लोबलाइजेशन हो सके। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-खुद को एक लाइन में कैसे परिभाषित करेंगे? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-‘विनम्र बनो’ इस मंत्र को आधार बनाकर जिंदगी को सीखते हुए वाहेगुरूजी की गुरूवाणी का अनुसरण करते हुए लोक कल्याणकारी भावना से जो आगे बढ़ता चला जा रहा है वो, जसबीर सिंह है।
डा.आकांक्षा सक्सेना-आजकल इसे देश विदेश के स्कूलों में व कई सामाजिक संस्थाओं ने आत्मसुरक्षा हेतु प्रमुखता से जोड़ा हुआ है, पर इसे सब्जेक्ट का दर्जा नहीं मिल सका तथा ओलम्पिक खेलों में भी इसे वो सम्मान प्राप्त नहीं। इस पर आप क्या कहना चाहेगें?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-सही मायने में कहा जाए तो इसमें भी एक पेजीदा पेच है। हम हर एक मार्शल आर्ट का एक ही एकेडमिक या फिर एक ही प्रोग्राम में एडजस्टमेंट नहीं करा सकेंगें, क्योंकि मार्शल आर्ट्स कई देशों में कई प्रकार के हैं और कई मार्शल आर्ट के बारे अब तक पता भी नहीं लग पाया है, परन्तु फिलहाल जूडो, ताइक्वांडो और शाॅटोकन कराटे ओलंपिक गेम्स में शामिल हैं। कई एकेडमिक स्कूल में फिजिकल एजुकेशन में मार्शल आर्ट्स को प्रमुखता दी जा रही है। आने वाले दिनों में मार्शल आर्ट्स और उभरे ऐसी में कामना करता हूं। 



डा.आकांक्षा सक्सेना-इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेगें?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-मार्शल आर्ट्स एक तपस्या है एक जीने की कला है। जिसे समझने के लिए इसे जीना पड़ता है। फिर एक दिन हम इसमें खुद को स्वतरू ही ढ़ाल लेते हैं। युवाओं को यही कहूंगा कि मार्शल आर्ट का कोई शाॅर्टकट नहीं है। आप बस वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो, हाथ में ध्वजा रहे, बल दल सजा रहे, तुम निडर डटे रहो। एक दिन विजयश्री स्वंय आपका विजय तिलक कर देगी। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-मार्शल आर्ट् में इतना ऊंचा मुकाम पाने के अलावा वर्तमान में आप विश्वहित में और क्या नया कर रहे है? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-मैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एडवाइजरी बोर्ड का ऑफिशयल मेम्बर हूं और राष्ट्रपति के अवाॅर्ड ऑफिस का भी मेम्बर हूं और वर्तमान में उत्तर और दक्षिण अमेरिकी संघ (NASAU) का रक्षा मंत्री हूँ। मैं कई देशों के अलग-अलग क्षेत्र में विश्व की प्रतिभाओं वैश्विक स्तर पर उभारने का प्रयास कर रहा हूं। इसके साथ ही मैं कई अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी में प्रेसिडेंट हूं। इसके साथ ही कई अंतराष्ट्रीय एनजीओ और कई अंतर्राष्ट्रीय मिलिटरी और पीस पुलिस, पुलिस संस्थानों से भी जुड़ा हुआ हूं। मेरा मानना है कि संसार के हित के लिए जितना भी कर सकते हो, वो खुशी से करना चाहिए। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-कृपया पीस पुलिस के बारे में बतायें? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-पीस पुलिस का मतलब है, वह पुलिस जो शांतिपूर्ण मानवता के कार्यों को सम्पन्न करती व करवाती है। मतलब जैसे किसी परिवार के बेटे या बेटी किसी भी सुरक्षा बल में है और शहीद हो जाते हैं। उस समय उस परिवार को ऐसे कठिन समय में कई सरकारी कार्यों व विभिन्न स्तरों पर हम लोग उनकी जिस भी तरह सहायता कर सकते हैं, वो हम करने को संकल्पित होते हैं। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-आपकी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेगें?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है और मेरी सफलता का राज मेरी माँ है। मेरा मानना है कि माँ से अधिक कोई और आपका सच्चा सलाहकार नहीं हो सकता। 



डा.आकांक्षा सक्सेना-इस क्षेत्र में इतनी ऊंचाई हासिल करने के पीछे आपका क्या संघर्ष रहा?
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-कहते हैं, जिस क्षेत्र में आपकी रुचि हो, उस क्षेत्र में चलते हुए आपको जितना भी संघर्ष करना पड़े, उसमें आनंद और आत्मसंतुष्टि निहित होती है। वो जीवन ही क्या, जिसमें रोमांच न हो, जिसमें उतार-चढ़ाव न हो। यही सब चीजें हमें जीना सिखाती हैं और जीवनपथ का सफल पथिक घोषित करती हैं। जिंदगी जीने के कई अंदाज होते है और मुझे मेरा यही अंदाज पसंद है।
डा.आकांक्षा सक्सेना-अब आप अमेरिका के निवासी हैं, तो क्या भारत की कभी याद आती है? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-बिल्कुल, भारत में मेरी जड़ें हैं। मैं मेरी जड़ों को कभी नहीं भूल सकता। मेरी श्वांस में बसता है भारत। जब याद आती है तो भारत आ जाता हूं और सभी परिवारजनों और दोस्तों से मिलता हूं। 
डा.आकांक्षा सक्सेना-विश्व के युवाओं के लिए आप क्या सोचते हैं? 
ग्रैंड मास्टर जसबीर सिंह-भारत के कई राज्यों में मार्शल आर्ट्स केन्द्र हैं, परन्तु मैं विश्व के हर कोने में मार्शल आर्ट्स के केन्द्र खोलना चाहता हूं, जिससे दुनिया का प्रत्येक बच्चा आत्मानुशासित, सुरक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर बन सके।


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