दिलीप भाटिया, शिक्षा वाहनी समाचार पत्र।
जहर उगलती चिमनिया
धुआँ छोड़ते वाहन
प्लास्टिक खाते हुए जानवर
दूषित होती हुई नदियाँ
कटते हुए पेड़
कम होते जंगल
बढ़ती हुई गर्मी
कम होती जा रही वर्षा
फैलते जा रहे कन्करिट के मकान
सूखती हुई नहर बावड़ी
बढ़ते हुए सान्स के रोग
घुटन भरी हवा
आसमान का काला धुआँ
फैला हुआ मोहल्ले में कचरा
ऐसे वातावरण में हमने
रोप दिए कुछ पौधे
दे दिए कुछ भाषण
पुरस्कृत कर दिए कुछ लोग
बान्ट दिए कुछ पर्चे
लगा दी एक प्रदर्शनी
खिच गई कुछ तस्वीरें
कर लिया पर्यावरण का वार्षिक श्राद्ध
खोया इतना सारा
पाया बस इतना सा
बढ़ता जा रहा असन्तुलन
सिसक रहा है पर्यावरण
सभी हैं उसके भक्षक
नहीं दिख रहा कोई रक्षक
सोचो जरा कल क्या होगा
पर्यावरण का क्या हाल होगा
भूल गए थे सुबह रास्ता
लौट चलें इस शाम में
बचा ले हम पर्यावरण को
बचा ले भावी पीढ़ी को
जो कर सके वही कहें
जो कहें वह करके दिखाएँ
पर्यावरण को हम बचाएँ
जन जन का भाग्य जगाएँ
बालाजी नगर, रावतभाटा, राजस्थान