गरिमा जीजी प्रणाम।
वाट्सएप पर तुम्हारी परेशानी पढ़ कर भाई का परेशान होना भी स्वाभाविक है। सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। अपनी बहू सरला से तुम्हें बहुत तकलीफ है, पर स्वयं भी दर्पण देख लीजिए। सरला एक सरल सी लड़की है। बहू डाक्टर नहीं है, जो ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारे बिगड़े पुत्र को सुधार कर राजा बेटा बना देगी। माताजी-पिताजी सोचते हैं कि बस नालायक बेटे के सात फेरे करवा दो, फिर बहू जादू से उसकी सारी बुरी आदतें सुधार देगी। दो अथवा अधिक बेटियों के बाद पधारे पुत्र को सिर पर चढाकर बिगाड़ने वाले मम्मी-पापा ही उसकी गलत आदतों के लिए जिम्मेदार हैं। नालायक पुत्र की उच्च शिक्षा के लिए किसी बेवकूफ प्राणी से लिया कर्ज़ सिर पर है। पुत्र अपनी दो रोटी खाने के लिए स्वयं तो आर्थिक रुप से सक्षम तो नहीं है। लाखों रुपए बर्बाद कर उसके लिए एक नई जिम्मेदारी ला दी जाती है, फिर रोना प्रारंभ हो जाता है कि बेटा तो हाथ से निकल गया। कड़वे सच के लिए भाई को क्षमा करना जीजी। पुत्र विवाह होने तक ही सुपुत्र रहता है। नई बहू का परिचय देते समय पुत्रवधू ही कहा जाता है, सुपुत्र वधू नहीं। उसे अब पुत्र एवं भाई के अतिरिक्त पति की भी भूमिका निभानी होती है। पीहर का सब कुछ छोड़कर अनजान परिवार में आई मासूम लड़की अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए उसी इनसान से अपेक्षा करती है, जिसके भरोसे वह आई है। सरला को बेटी मत कहिए, बहू ही रहने दें। बस इंसान समझ लें।
बेटी को बेटा मत कहिए। बहू को बेटी कहकर सबको बेवकूफ बनाने का प्रयास मत करिए। हर इंसान अपने स्वाभाविक रूप में ही शोभा देता है। समाज में बढ़ चढ़ कर बातें करने से कोई भी प्रभावित नहीं होता। माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता। सास कभी माँ का स्थान नहीं ले सकती। बहू भी बेटी नहीं बन सकती। बढ़-चढ़ कर बातों की अपेक्षा सरल स्पष्ट रह कर परिवार में तनाव कम करें। सरला को उसी प्रकार स्वीकार करें, जिस प्रकार आपको ससुराल में स्वीकार किया गया था। भरोसा है कि सरला को स्वीकार कर परिवार में स्नेह प्यार के खुशबू भरे फूल खिलाने का प्रयास करेगी। स्पष्टता के लिए क्षमा।
दिलीप भाटिया रावतभाटा राजस्थान
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