डाॅ दशरथ मसानिया, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हे मार्क जुकरबर्ग !
तुमने फेसबुक बनाई,
घर घर मे बेकारी बड़ाई।
नाराज होते बाप माई ,
पर खुश होती तरुणाई ।
मैं शिक्षक खाली हाथ हूँ,
फिर भी तुम्हारे साथ हूँ।
मेरे हर नवाचार को
जन जन तक पहुँचाया आपने ।
जो कभी सोचा नही किसी बाप ने
तुम्हे कितना धन्यवाद दूँ
वो बात अलग है
कुछ लोग तोड़ रहे है ,
वैमनस्यता परोस रहे हैं।
अश्लीलता, अमानवीयता
और पीछे छुरी घोप रहे हैं।
इसमें आपका क्या दोष
जो बुराई का बीज रोप रहे है।
आगर (मालवा) मध्य प्रदेश
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